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ग़ज़ल -- हरगिज़ न हमको मूकदर्शक पासबानी चाहिए ( दिनेश कुमार 'दानिश' )

2212--2212--2212--2212

हरगिज़ न हमको मूकदर्शक पासबानी चाहिए
दुश्मन का मुँह जो तोड़ दे अब वो जवानी चाहिए

फ़िरक़ा परस्ती की जड़ों को काटना है गर हमें
लफ़्ज़े-सियासत के लिए उम्दा म'आनी चाहिए

ये क्या कि हम बँटते गए दैरो-हरम के नाम पर
जम्हूरियत जब हो, रेआया भी सयानी चाहिए

उस उम्र में बच्चों के हाथों में यहाँ हथियार हैं
जिस उम्र में ख़ुशियों की उनको मेज़बानी चाहिए

ग़ुरबत अशिक्षा भुखमरी के मुद्दए तो गौण हैं
संसद में चर्चा के लिए ताज़ा कहानी चाहिए

निन्यानवे के फेर में उलझी है सारी ज़ह्नियत
सबको अमीरे-शह्र की कुछ मेहरबानी चाहिए

दानिशवरों के शह्र में है बोल-बाला झूट का
इन मुंसिफ़ों को भी कहाँ अब हक़-बयानी चाहिए

मौलिक व अप्रकाशित
.

Views: 458

Comment

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Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on September 27, 2016 at 10:14am
आदरणीय दिनेश भाई बहुत ही सुन्दर सटीक और समयानुकूल रचना प्रस्तुत की है आपने । बहुत बहुत बधाई । सादर ।
Comment by Samar kabeer on September 26, 2016 at 11:53pm
जनाब दिनेश कुमार 'दानिश' जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं ।
यह ग़ज़ल कुछ आपके मिज़ाज से हटकर है,ग़ज़ल का पूरा भार क़ाफिये उठाये हुए हैं ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 26, 2016 at 3:38pm

बहुत बढ़िया आ. दिनेश कुमार जी अच्छी ग़ज़ल हुई है बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by आशीष सिंह ठाकुर 'अकेला' on September 26, 2016 at 2:10pm

आ. जनाब दिनेश कुमार 'दानिश' जी !!!
बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है !!!
सुन्दर प्रस्तुति के लिये दाद और मुबारक़बाद कबूल करें!!!
मुझे ये सब शेर बड़े पसंद आये !!! सादर !!!

ये क्या कि हम बँटते गए दैरो-हरम के नाम पर
जम्हूरियत जब हो, रेआया भी सयानी चाहिए

उस उम्र में बच्चों के हाथों में यहाँ हथियार हैं
जिस उम्र में ख़ुशियों की उनको मेज़बानी चाहिए

ग़ुरबत अशिक्षा भुखमरी के मुद्दए तो गौण हैं
संसद में चर्चा के लिए ताज़ा कहानी चाहिए

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