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बिगडती बात ( गजल )

१२२२    /    १२२२   /  १२२२   /   २२२ 
.

जमी जो बर्फ रिश्तों पे  पिघल जाये तो अच्छा है 

बिगड़ती बात बातों से सँभल जाये तो अच्छा है 

 

हमारी याद जब आये शहद यादों में घुल जाये

छिपी जो दिल में कडवाहट निकल जाये तो अच्छा है  

 

तमन्ना  चाँद पाने की बुरी होती नही लेकिन

जमीं से देखकर ही दिल बहल जाये तो अच्छा है

 

मुकद्दर में मुहब्बत के लिखी हैं ठोकरें ही जब 
गमों से पेशतर ये दिल सँभल जाये तो अच्छा है

 

सुना है मुन्तजिर होती है मंजिल गिरने वालों की 

उन्हीं के इश्क में फिर दिल फिसल जाये तो अच्छा है

 

न जाने बाद में क्या हाल हो इस दिल दीवाने का

तुम्हारे सामने ही दम निकल जाये तो अच्छा है

*******************************************************   

( मौलिक व अप्रकाशित )       

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Comment by Sachin Dev on October 14, 2016 at 12:46pm

आपका हार्दिक आभार आ. बृजेश कुमार ब्रज  जी ! 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 12, 2016 at 10:00pm

बहुत ही खूबसूरत....हार्दिक बधाइयाँ

Comment by Sachin Dev on October 1, 2016 at 2:53pm

आपका हार्दिक आभार  आ. रामबली गुप्ता जी ! 

Comment by रामबली गुप्ता on September 30, 2016 at 5:24am
वाह वाह क्या बात है ज़नाब सचिन देव जी। शेर दर शेर मुबारकबाद लीजिये इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए।

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