देखो भाई, स्मार्ट फोन का, जमाना आया,
साथ में नेट-पैक वालों की, चाँदी कर लाया,
उँगलियों के स्पर्श से, चलता ये पुर्जा,
हजारों रूपये का , इस पर होता खर्चा,
हर छुअन पर , जाता है सिहर,
जहाँ छुओ, वहाँ खुल जाता, एक नया मंजर,
फेसबुक, व्हाट्सएप की बड़ी बहार है,
चुटीले-उपदेशी संदेशों की भरमार है,
विभिन्न समूहों में होरहीं, गहन चर्चाएँ,
सारे राष्ट्र की समस्याएँ, यहीं सुलझाएँ,
अपने -अपने गुटों की, खुली है चौपाल,
सरकार भी चौकन्नी हुई, रखे इन पर नजर, बेहाल,
देखो भाई, स्मार्ट फोन का जमाना आया,
परिवार वालों में भी, बँटवारा कर लाया,
अलग चाहिए सबको, एक-एक अपना-अपना,
एक ही से स्मार्ट फोन से, सबका काम नहीं चलना,
लैंड़लाइन का जमाना है, बहुत याद आता,
एक जगह बँधा बिचारा, सबको था सँभालता,
कोई दूसरा स्मार्ट फोन, देख भी नहीं सकता लाला,
महफूज रखे इसे सदा, पासवर्ड का पक्का ताला,
अब स्मार्ट फोन चिपका , हर दम साथ है,
जिसका जितना महँगा, उसकी उतनी औकात है,
सुनहरा भी इस पर चढ़ाया है रंग,
एक से एक माड़ल, देख दुनिया है दंग,
मुसीबत और अकेलेपन में , इसका बड़ा साथ है,
लेकिन परिवार तोड़ने में भी, इसका बड़ा हाथ है,
स्मार्ट फोन हरदम , साथ ना चिपकाओ,
घर में इसे दूर करो, सबके संग हँसी-खुशी,
समय बिताओ, कर लो दिन-भर में इसका समय पक्का,
ना दे ये हमारे ,शांति-सुकून को धक्का,
नौनिहालों को इसकी, लत ना लगाओ,
छोटी उम्र में उनको, चश्मा ना चढ़वाओ,
सारा दिन नेट-गेम, उनका दिमाग थका देंगे,
उनकी कल्पना की, उड़ान-शक्ति मिटा देंगे,
कुंद होता इससे, उनका अध्ययन-मनन,
अपने में सिमटे रहने की, प्रवृत्ति को बढ़ाता सघन,
अब भी समय है, सुधर जाओ,
इसको जीवन का, अभिन्न अंग ना बनाओ,
मशीन को मशीन ही रहने दो,
इसके भ्रमजाल में, अपनी सुख-शांति ना उलझाओ,
आभासी दुनिया को, परिवार का विकल्प ना बनाओ।
-अर्पणा शर्मा , भोपाल ( ये कविता मेरी सर्वथा मौलिक एवं अप्रकाशित रचना है। सर्वाधिकार सुरक्षित )
Comment
हार्दिक बधाई इस रचना के लिए आदरणीय अर्पण जी |
आदरणीया अर्पणा जी , अच्छी कविता हुई है , हार्दिक बधाई । आ. शिज्जु भाई जी से मै भी सहमत हूँ ।
आ. अर्पणा जी स्मार्ट फोन तथा उसके इस्तेमाल पर अच्छी रचना हुई है बधाई आपको, लेकिन ये आपके दर्शाए अनुसार हास्य-व्यंग्य प्रतीत नहीं होता
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