“उत्कर्ष“
एक टिमटिमाते, बुझते तारे का उत्कर्ष,
देख लोग, होते चमत्कृत,
लेकिन वे बूझने में असमर्थ,
उसका नैपथ्य में छिपा,
गहन, सतत संघर्ष,
रुपहली चमक के पीछे छिपे,
कालिमा के सुदीर्घ, लंबे वर्ष,
फिर भी आशाओं से परिपूर्ण,
बाधाएँ, चुनौतियाँ पार कर,
उत्साहित, प्रसन्नचित्त, प्रकाशमान सहर्ष,
प्रोत्साहन देता अनूठा, गांभीर्य शब्द संघर्ष,
छिपा गूढ इसमें तात्पर्य,
ड़टे रहो कर्तव्यपथ पर “ संग + हर्ष",
अब दूर कहीं मुसकुराता है,
जगमगाता है वो नन्हा तारा,
पाकर जीवन का उत्कर्ष..!! :-
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
आपकी सह्रदय सराहना से मेरी कविता सार्थक हुई आदरणीया कल्पना जी, श्रीमान् शिज्जू जी एवं श्रीमान् कालीपद प्रसाद जी । सादर नमन।
अच्छी भावपूर्ण रचना हुई है आदरणीया अपर्णा जी | हार्दिक बधाई |
अच्छी भावाभिव्यक्ति हुई है आ. अर्पणा जी
इस गहन भाव युक्त कविता के लिए आपको बधाई आ अपर्णा जी !
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