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221 2121 1221 212

बिकते रहे ईमान हुकूमत की फेर में ।
मरते गए जवान हिफ़ाज़त की फेर में ।।

नापाक पाक है ये खबर आम हो गई ।
बरबादियाँ तमाम नसीहत की फेर में ।।

कुछ दर्द को बयां वो सरेआम कर गया ।
मिटता रहा ये मुल्क शराफ़त की फेर में ।।

आ जाइए हुजूर ये हिन्दोस्तान है ।
गद्दार बिक रहे हैं रियासत के फेर में ।।

ऐटम की धमकियों का असर कुछ नही हुआ ।
हम भी पड़े हुए हैं हिमाकत की फेर में।।

सुन ले मेरे रकीब जमाना बदल गया ।
बिखरा तेरा वजूद अदावत की फेर में ।।

ऐ हुर्रियत फरेब समझने लगे सभी ।
कश्मीर से गया तू तिजारत की फेर में ।।

हैं मांगते सबूत वो कुर्बानियों की अब ।
रहते जो दुश्मनो की इबादत की फेर में ।।

अक्सर छुरी लगी है हमारे ही पीठ में ।
जब भी पड़े है तुझ से मुहब्बत की फेर में ।।

--नवीन मणि त्रिपाठी
अप्रकाशित और मौलिक

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Comment by Naveen Mani Tripathi on October 8, 2016 at 3:22pm
आ0 सुरेश कल्याण साहब शुक्रिया ।
Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on October 8, 2016 at 3:19pm
आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी सुन्दर एवं भावपूर्ण रचना के लिए हार्दिक बधाई प्रेषित है । सादर ।

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