तेरे आने से मेरा घर जगमगाया
पूर्णिमा का चंद्र जैसे मुस्कुराया
स्वांग रचकर रचयिता सबको नचाये
इस जगत को मंच इक अद्भुत बनाया
लाज कपड़ो में छुपाती थी कभी वो
आज उरियानी का कैसा दौर आया
आपदा जिसने न झेली जिन्दगी में
हौसलों की भी परख वो कर न पाया
पूछता दिल कटघरे में खुद को पाकर
इश्क ही क्यों हर कदम पे लड़खड़ाया
ज़िन्दगी भी पूछती है क्या बताऊँ
क्या मिला है और क्या मैं छोड़ आया
खोजती है हर नजर बस एक तुझको
पर नज़ारों में नजर तू ही न आया।।
ये जुदाई है कयामत क्या करूँ में
सब्र की है इन्तिहा कोई खुदाया
ख्वाब में मिलते रहे हैं आप हमसे
नाथ को ताबीर का फल मिल न पाया
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
ज़िन्दगी भी पूछती है क्या बताऊँ
क्या मिला है और क्या मैं छोड़ आया---वाह्ह्ह्ह
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई है आपकी बह्र --रमल मुसद्दस सालिम २१२२ २१२२ २१२२ को सुघड़ता से निभाया है आपने |दिल से दाद क़ुबूल करें आद० सुरेन्द्र नाथ जी |
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