बह्र : २२११ २२११ २२११ २२
क्या क्या न करे देखिए पूँजी मेरे आगे
नाचे है मुई रोज़ ही नंगी मेरे आगे
डरती है कहीं वक़्त ज़ियादा न हो मेरा
भागे है सुई और भी ज़ल्दी मेरे आगे
सब रंग दिखाने लगा जो साफ था पहले
जैसे ही छुआ तेल ने पानी मेरे आगे
ख़ुद को भी बचाना है और उसको भी बचाना
हाथी मेरे पीछे है तो चींटी मेरे आगे
सदियों मैं चला तब ये परम सत्य मिला है
मिट्टी मेरे पीछे थी, है मिट्टी मेरे आगे
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय विजय निकोर जी
बहुत ही खूबसूरत ख्याल ! मुबारक।
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय रवि शुक्ला जी। आपने सही कहा मुझे भी ये शे’र सबसे ज़्यादा प्रिय है।
शुक्रिया आदरणीय समर साहब। इस ऐब को अभी दूर किये देते हैं।
शुक्रिया आदरणीया अर्पना शर्मा जी
शुक्रिया आदरणीय सुरेश कुमार जी
आदरणीय धर्मेन्द्र जी बहुत बढि़या गजल कही है आपने शेर दर शेर मुबारक बाद और दाद हाजिर है
ख़ुद को भी बचाना है और उसको भी बचाना
हाथी मेरे पीछे है तो चींटी मेरे आगे आपके इस शेर के खयाल के नयेेपन ने बहुत प्रभावति किया
दाद हाजिर है ।
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