बह्र : २१२२ १२१२ २२
दर्द-ए-मज़्लूम जिसने समझा है
वो यक़ीनन कोई फ़रिश्ता है
दूर गुणगान से मैं रहता हूँ
एक तो जह्र तिस पे मीठा है
मेरे मुँह में हज़ारों छाले हैं
सच बड़ा गर्म और तीखा है
देखिए बैल बन गये हैं हम
जाति रस्सी है धर्म खूँटा है
सब को उल्लू बना दे जो पल में
ये ज़माना मियाँ उसी का है
अब छुपाने से छुप न पायेगा
जख़्म दिल तक गया है, गहरा है
आज नेता भी बन गया ‘सज्जन’
कुछ न करने का ये नतीज़ा है
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(मौलिक एवम अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय समर साहब आप ठीक कह रहे हैं ये उदाहरण मैंने ग़लत ले लिया था। पर ऐसे तमाम उदाहरण मौजूद हैं। फुर्सत मिलती है तो ढूँढता हूँ। ईता-ए-जली तभी होता है जब ईता-ए-हुस्न न हो। जैसा आपने उदाहरण में बता ही दिया है।
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय Ravi Shukla जी। मेरे विचार में वीनस केसरी जी ने इसकी चर्चा मंच पर की है। कहाँ की है ये मुझे ठीक से याद नहीं आ रहा है। वैसे भी ऐसी स्थितियाँ बहुत कम बनती हैं इसलिए इस पर बहुत विस्तृत चर्चा की आवश्यकता मेरे विचार में नहीं है। बस यह ध्यान रखना है कि जिस शब्द के टुकड़े किये जायँ वह मूल शब्द हो। अगर मूल शब्द नहीं होगा तब दोष उत्पन्न हो जाएगा जैसे ‘नाम’ और ‘बदनाम’ लेने पर काफ़िया न होने की स्थिति बन जाएगी। ऐसे उदाहरण कम हैं पर हैं जैसे देखिए चचा ग़ालिब को,
आह को चाहिए इक उम्र असर होने तक
कौन रहता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होने तक
इसके बाद कवाफ़ी में ‘अर’ को निभाया गया है जैसे ‘ख़बर’ इत्यादि
आदरणीय धर्मेन्द्र जी बहुत अच्छी गजल कही आपने मतले से मकते तक हर शेर बढि़या दिली दाद कुबूल करें । मंच पर उपलब्ध लेख में शायद ईता ए हुस्न की चर्चा नहीं हुई है इसलिये ये नई बात है हमारे लिये भी । काफिया के दिये गये नियम के अनुसार नये अभ्यासियों ( हम भी ) गजल मे आ का काफिया समझने में अभी थोड़ी मुश्किल आ सकती है । जैसा कि पढ़ा गया है अंतिम समान हर्फ को हटा कर देखें, .... इस लिहाज से कुछ मार्ग दर्शन और चर्चा इसी बहाने हो तो सबको विषय समझने में आसानी होगी । साादर
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सुरेन्द्र नाथ जी
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सुरेश कुमार जी
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय समर साहब। यहाँ ईताए जली दोष नहीं है बल्कि ईता ए हुस्न है।
ईता हुस्न उस स्थिति में होता है जब मतले का एक क़ाफ़िया टूट कर उसी शब्द में बदलाव पैदा कर दे। इस मतले में क़ाफ़िया ‘फरिश्ता’ के दो हिस्से किये गये हैं। ये ऐब नहीं है बल्कि हुस्न है। ऐसे में शाइर के पास ये छूट होती है कि वो आगे क्या कवाफ़ी लेना चाहता है। इसके अलावा यदि कोई बात है जो ज़रूर बताएँ आदरणीय।
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