For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - ये जिंदगी है यहाँ इम्तहान और भी हैं

1212 1122 1212 112

हमारे जख़्म के गहरे निशान और भी हैं ।
ये जिंदगी है यहाँ इम्तहान और भी हैं ।।

न रोक आज परिंदों की आजमाइश को ।
फ़ना के बाद कई आसमान और भी हैं ।।

समझ सको तो मेरी बात मान लो वरना ।
मेरी किताब में लिक्खी जुबान और भी हैं ।।

जरा सँभल के चलो ये मुकाम ठीक नही ।
यहां तो लोग भी रखते इमान और भी हैं ।।

न जाइयेगा कभी इश्क के समन्दर में ।
वहाँ तो दर्द के बढ़ते उफान और भी हैं ।।

जो हुक्मरां है उसे रिश्वतों से मतलब है ।
फरेब खाने से आये बयान और भी हैं ।।

बरी हुए हो तो इतना नहीं गुरूर करो ।
अदालतें हैं , खुदा के विधान और भी हैं ।।

है क़ातिलों की हिमाक़त व् हैसियत पे नज़र ।
सनम के हाथ में तीरो कमान और भी हैं ।।

वो ढह गयी है इमारत जहाँ मिले थे हम ।
मुहब्बतों के तो गिरते मकान और भी हैं ।।

वफ़ा खरीद न उससे वो बेचता ही नहीं ।
इसी बजार में खुलती दूकान और भी हैं ।।

--नवीन मणि त्रिपाठी
अप्रकाशित मौलिक

Views: 497

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Naveen Mani Tripathi on October 21, 2016 at 11:13am
आदरणीय भंडारी सर बहुत बहुत आभार । बिलकुल सहमत हूँ गुंजाइश की सीमारेखा कोई नही है ।
Comment by Naveen Mani Tripathi on October 21, 2016 at 11:12am
आदरणीय कबीर साहब आपकी पारखी नज़र को सलाम । तहेदिल से शुक्रिया । आपकी सलाह का एडिट करके ठीक करता हूँ ।
Comment by Samar kabeer on October 20, 2016 at 9:48pm
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद वुबुल फरमाएं ।
दूसरे शैर में 'आजमाइस' को "आज़माइश" कर ले ।
तीसरे शैर में 'ज़ुबान'एक वचन है और आपकी रदीफ़ बहुवचन है ?
चौथे शैर में 'ईमान'शब्द खटक रहा है ।
आठवें शैर का ऊला मिसरा बह्र में नहीं है ।
आख़िरी शैर में 'बजार'शब्द ग़लत है,सही शब्द है "बाज़ार" ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 20, 2016 at 8:31am

आदरणीय नवीन भाई , बहुत अच्छी गज़ल कही आपने , हार्दिक बधाइयाँ ।

न रोक आज परिंदों की आजमाइस को ।
फ़ना के बाद कई आसमान और भी हैं ।।

बरी हुए हो तो इतना नहीं गुरूर करो ।
अदालतें हैं , खुदा के विधान और भी हैं ।  --- बहुत खूब , हार्दिक बधाई

कुछ शेर मे कहन के लिहाज़ से गुंजाइश दिखती है , देखियेगा भला ! वैसे ये बात भी सही है कि कुछ भी कह लें गुंजाइश हमेशा रहती है , और अच्छे की , चाहे मै कहूँ या आप । फिर भी ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Sunday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service