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अर्पणा शर्मा: कविता - "अक्षर"

अक्षर-अक्षर माला जुड़ी,
मिली मानुष मन को वाणी,
अक्षर की रचना बनी,
विश्व में प्रगतिवाहिनी,
लिखें या बोलें , संप्रेषण में,
अक्षर का ना कोई सानी,
दर्द, दर्प, दुख, प्रेम-विरह,
शंका, उल्लास या सनसनी,
अक्षरों में निहित भावों से,
हर मन की थाह जानी,
अक्षर हैं संवदिया,
महत्ता इनकी जिसने गुनी,
वश में कर ली दुनिया उसने,
बोल सच्ची-मधुर वाणी,
अक्षर-अक्षर में छिपी,
सभ्यता के उत्थान की कहानी,
रच लो सृजन का अमर संसार,
बन कर अक्षर ज्ञानी...।

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Arpana Sharma on October 26, 2016 at 5:12pm
आदरणीय जनाब कबीर साहाब - मेरी रचना पर आपके आशीर्वाद का बहुत धन्यवाद । सादर वंदन।
Comment by Samar kabeer on October 26, 2016 at 4:55pm
मोहतरमा अर्पणा शर्मा जी आदाब,अक्षर को बुनियाद बनाकर आपने अच्छे भाव व्यक्त किये इस कविता में,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Arpana Sharma on October 26, 2016 at 3:05pm
आदरणीय सुशील सरना जी-मेरी अकिंचन सी रचना पर आपकी सराहना का बहुत आभार, सादर वंदन।
Comment by Sushil Sarna on October 26, 2016 at 12:32pm

आदरणीय अर्पणा जी अक्षर को केंद्रित करते हुए प्रस्तुति रचना अपने भावों के सम्प्रेषण में सुंदर बन पड़ी है।  हार्दिक बधाई सुंदर प्रस्तुति के लिए। 

कृपया ध्यान दे...

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