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नफरत न करना ..

प्यार
कितनी पावन
अनुभूति है

ये
पात्रानुसार
स्वयं को
हर रिश्ते
के चरित्र में
अपनी पावनता के साथ
ढाल लेता है

ये
आदि है
अनंत है
ये जीवन का
पावन बसंत है

प्यार
तर्क वितरक से
परे है

प्यार तो
हर किसी से
बेख़ौफ़
किया जा सकता है
मगर
नफ़रत !
ये प्यार सी
पावन नहीं होती
ये वो अगन है
जो ख़ुद भी जलती है 
औरों को भी
जलाती है

प्यार से
नफरत तो मिट सकती है
मगर
नफ़रत की ज़मीं पे
कभी प्यार के
अंकुर नहीं फूटते
बस
इक दमघोटू
धुँआ शेष रहता है
जो हरदम
यही कहता है
कि करना
तो सिर्फ

प्यार ही करना
कभी किसी के वास्ते
नफरत न करना

सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on November 3, 2016 at 12:06pm

आदरणीया  डॉ. प्राची सिंह जी  प्रस्तुति को आत्मीय मान से अलंकृत करने का  हार्दिक आभार। त्यौहारी व्यस्तता के चलते आभार व्यक्त करने में विलम्ब हुआ , क्षमा चाहता हूँ। 

Comment by Sushil Sarna on November 3, 2016 at 12:05pm

आदरणीय समर कबीर  साहिब    प्रस्तुति को आत्मीय मान से अलंकृत करने का  हार्दिक आभार। त्यौहारी व्यस्तता के चलते आभार व्यक्त करने में विलम्ब हुआ , क्षमा चाहता हूँ। 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 27, 2016 at 7:21pm

नफ़रत की ज़मीं पे 
कभी प्यार के 
अंकुर नहीं फूटते 
बस 
इक दमघोटू 
धुँआ शेष रहता है ..............वाह 

सुन्दर प्रस्तुति आ० सुशील सरना जी 

हार्दिक बधाई 

Comment by Samar kabeer on October 27, 2016 at 5:08pm
जनाब सुशील सरना जी आदाब,अच्छा सन्देश दे रही है आपकी कविता,इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

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