For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

घरोंदा - लघुकथा –

  घरोंदा - लघुकथा   –

 "सुनोजी, तुम्हारे रिटायरमेंट में डेढ़ साल बचा है।रिटायर होने के बाद यह सरकारी मकान  छोड़ना होगा।कुछ सोचा है,  कहाँ जांयेंगे"।

"सुधा, अभी अपने पास डेढ़ साल है। कुछ ना कुछ इंतज़ाम हो जायेगा"।

"इतने साल की नौकरी में तो कोई तीर मारा नहीं, अब डेढ़ साल में क्या चमत्कार कर लोगे"।

"सुधा, तुम यह कैसी बातें करती हो।बत्तीस साल, बेदाग नौकरी की है।रिटायर होने पर पी एफ़ और ग्रेचुटी का इतना तो पैसा मिल ही जायेगा कि दो कमरों का फ़्लैट खरीद सकूं"।

" वाह शुक्ला जी, क्या कहने, रसद विभाग का हैड, दो कमरों के फ़्लैट में रहेगा और उसके मातहत क्लर्क कोठी और बंगले में रहेंगे"।

"सुधा, तुम्हारा यही नज़रिया मेरा मन दुखाता है। तुम जानती हो कि मैं अपना ईमान बेचकर पैसा नहीं कमा सकता |बंगले और कोठी से अधिक महत्वपूर्ण होता है घर में सुख और शांति, भले ही घर  छोटा हो, मगर चैन की नींद आनी चाहिये"।

"तुम्हारे विभाग के हर छोटे बड़े कर्मचारी का अपना एक ना एक घर है, कुछ के तो एक से भी अधिक, केवल तुम्हीं हो जिसका एक प्लॉट भी नहीं| सभी दोनों हाथों से दिल खोल कर कमा रहे हैं"।

"और मैडम यह भी सुन लो, जो कमा रहे हैं उन सभी के खिलाफ़ भ्रष्टाचार के आरोप में इन्क्वारियां भी चल रही हैं"।

“शुक्ला जी, इन सरकारी इन्क्वारियों में क्या होता है, हमें सब पता है”|

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 554

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by TEJ VEER SINGH on November 6, 2016 at 8:57pm

हार्दिक आभार आदरणीय सुशील सरना जी।आपने लघुकथा को समय दिया, सराहना की, मैं कृतार्थ हो गया।

Comment by Sushil Sarna on November 6, 2016 at 2:30pm

“शुक्ला जी, इन सरकारी इन्क्वारियों में क्या होता है, हमें सब पता है”|...... बहुत सुंदर आदरणीय तेजवीर सिंह जी ये कटाक्ष बहुत कुछ कह गया। ईमानदार भी दम तोड़ देगा ईमानदारी भी दम तोड़ देगी बस रह जाएगा एक अफ़सोस किसी बड़े बंगले के नीचे खड़ा अपने पाँव में ईमानदारी की टूटी चप्पल के साथ।  हार्दिक बधाई स्वीकार करें सर। 

Comment by TEJ VEER SINGH on November 5, 2016 at 9:07pm

हार्दिक आभार आदरणीय शेख उस्मानी जी।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on November 5, 2016 at 8:53pm
बहुत बढ़िया। // इन सरकारी इन्क्वारियों में क्या होता है, हमें सब पता है”// बेहतरीन कटाक्ष पूर्ण रचना के लिए बहुत बहुत हार्दिक बधाई आपको आदरणीय तेज वीर सिंह जी।
Comment by TEJ VEER SINGH on November 5, 2016 at 5:55pm

हार्दिक आभार आदरणीय समर क़बीर साहब जी।लघुकथा को सराहने और त्वरित प्रतिक्रिया के लिये भी पुनः आभार।

Comment by Samar kabeer on November 5, 2016 at 2:30pm
जनाब तेजवीर सिंह जी आदाब,बहुत अच्छा संदेश दे रही है आपकी लघुकथा,हमेशा की तरह बहतरीन रचना से नवाज़ा है आपने मंच को,इस प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अच्छा लगता है गम को तन्हाई मेंमिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।*दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर क्या…See More
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
yesterday
PHOOL SINGH posted a blog post

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर…See More
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन।सुंदर और समसामयिक लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। प्रदत्त विषय को एक दिलचस्प आयाम देते हुए इस उम्दा कथानक और रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया…"
Monday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदरणीय शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी टिप्पणी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। शीर्षक लिखना भूल गया जिसके लिए…"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"समय _____ "बिना हाथ पाँव धोये अन्दर मत आना। पानी साबुन सब रखा है बाहर और फिर नहा…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service