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पंकज जी आपके गीत में सरगम भी है संगीत भी है . बधाई आपको .
तेरे दीदार को ये निगाहें मेरी,
कब से व्याकुल हैं विह्वल ये धड़कन मेरी
आ भी जाओ परी, आ भी जाओ परी।
कितने अरमान मन में सँजोये हूँ मैं
नींद तेरे लिए ही तो खोए हूँ मैं
इस अँधेरे नगर में बिछे चाँदनी
घोल दे ज़िन्दगी में मधुर रागिनी
राग पायल की छम छम सुना सांवरी
आ भी जाओ परी, आ भी जाओ परी।
तेरे काजल सजे दोनों चंचल नयन
फूल सा खूबरू तेरा कोमल बदन
सोचता हूँ तुम्हें मुस्कुराता है मन
स्वप्न में आओ तो जगमगाता चमन
मेरी बाहों के घर में बसो सुंदरी
आ भी जाओ परी, आ भी जाओ परी।
इससे पहले की हसरत बिखरने लगे
कल्पना की ज़मीं भी धसकने लगे
साँस लेने की आदत न छोड़ूँ कहीं
थाम लो धड़कनों को हसीं नाज़नीं
प्यास सदियों की हर लो सुधा गागरी
आ भी जाओ परी, आ भी जाओ परी।
आदरणीय पंकज जी, बहुत सुन्दर गीत लिखा है आपने. पढ़कर मुग्ध हो गया. इस शानदार प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई. सादर
वैसे टेक की पंक्ति को बार बार लिखने की आवश्यकता नहीं पड़ती क्योकिं वो पाठक गुनगुनाते हुए खुद गा लेता है.
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