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आ भी जाओ परी- पंकज द्वारा गीत

तेरे दीदार को ये निगाहें मेरी
कब से व्याकुल हैं विह्वल ये धड़कन मेरी
आ भी जाओ परी
आ भी जाओ परी।

आ भी जाओ परी
आ भी जाओ परी।।

कितने अरमान मन में सँजोये हूँ मैं
नींद तेरे लिए ही तो खोए हूँ मैं

इस अँधेरे नगर में बिछे चाँदनी
घोल दे ज़िन्दगी में मधुर रागिनी

राग पायल की छम छम सुना सांवरी
आ भी जाओ परी
आ भी जाओ परी।

आ भी जाओ परी
आ भी जाओ परी।।1।।

तेरे काजल सजे दोनों चंचल नयन
फूल सा खूबरू तेरा कोमल बदन

सोचता हूँ तुम्हें मुस्कुराता है मन
स्वप्न में आओ तो जगमगाता चमन

मेरी बाहों के घर में बसो सुंदरी
आ भी जाओ परी
आ भी जाओ परी।

आ भी जाओ परी
आ भी जाओ परी।।2।।

इससे पहले की हसरत बिखरने लगे
कल्पना की ज़मीं भी धसकने लगे

साँस लेने की आदत न छोड़ूँ कहीं
थाम लो धड़कनों को हसीं नाज़नीं

प्यास सदियों की हर लो सुधा गागरी
आ भी जाओ परी
आ भी जाओ परी।

आ भी जाओ परी
आ भी जाओ परी।।3।।


मौलिक अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on November 23, 2016 at 8:30pm
आदरणीय गोपाल सर सादर प्रणाम और बहुत बहुत आभार
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on November 23, 2016 at 8:30pm
आदरणीय मिथिलेश सर सुस्वागतम।

सादर धन्यवाद
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 23, 2016 at 7:44pm

पंकज जी आपके गीत में सरगम भी  है  संगीत भी है . बधाई आपको .

Comment by Samar kabeer on November 22, 2016 at 10:09pm
जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब,आपको मंच पर सक्रीय देख कर कितनी ख़ुशी हो रही है,बयान नहीं कर सकता ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on November 22, 2016 at 6:03pm

तेरे दीदार को ये निगाहें मेरी,
कब से व्याकुल हैं विह्वल ये धड़कन मेरी
आ भी जाओ परी, आ भी जाओ परी।

कितने अरमान मन में सँजोये हूँ मैं
नींद तेरे लिए ही तो खोए हूँ मैं
इस अँधेरे नगर में बिछे चाँदनी
घोल दे ज़िन्दगी में मधुर रागिनी


राग पायल की छम छम सुना सांवरी
आ भी जाओ परी, आ भी जाओ परी।

तेरे काजल सजे दोनों चंचल नयन
फूल सा खूबरू तेरा कोमल बदन
सोचता हूँ तुम्हें मुस्कुराता है मन
स्वप्न में आओ तो जगमगाता चमन

मेरी बाहों के घर में बसो सुंदरी
आ भी जाओ परी, आ भी जाओ परी।

इससे पहले की हसरत बिखरने लगे
कल्पना की ज़मीं भी धसकने लगे
साँस लेने की आदत न छोड़ूँ कहीं
थाम लो धड़कनों को हसीं नाज़नीं

प्यास सदियों की हर लो सुधा गागरी
आ भी जाओ परी, आ भी जाओ परी।

आदरणीय पंकज जी, बहुत सुन्दर गीत लिखा है आपने. पढ़कर मुग्ध हो गया. इस शानदार प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई. सादर 

वैसे टेक की पंक्ति को बार बार लिखने की आवश्यकता नहीं पड़ती क्योकिं वो पाठक गुनगुनाते हुए खुद गा लेता है. 

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on November 21, 2016 at 5:15pm
आदरणीय बाऊजी सादर प्रणाम, गल्ती को अभी सुधारता हूँ।
Comment by Samar kabeer on November 21, 2016 at 5:11pm
अज़ीज़म पंकज कुमार मिश्रा आदाब,बहुत सुंदर गीत लिखा है,बधाई स्वीकार हो ।
16वीं और 17वीं पंक्ति में 'तेरे'और तुम्हारे'देखिये ।

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