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ग़ज़ल (साँस को छोड़ना भी मना है)

ग़ज़ल (साँस को छोड़ना भी मना है)

(2122 122 122)

बोलना बात का भी मना है,
साँस को छोड़ना भी मना है।

दहशतों में सभी जी रहे है,
दर्द का अब गिला भी मना है।

ख्वाब देखे कभी जो सभी ने,
आज तो सोचना भी मना है।

जख्म गहरे सभी सड़ गये हैं,
खोलना घाव का भी मना है।

सब्र रोके नहीं रुक रहा अब,
बाँध को तोड़ना भी मना है।

अब नहीं है 'नमन' का ठिकाना,
आशियाँ खोजना भी मना है।


मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by गिरिराज भंडारी on December 6, 2016 at 11:07am

आदरणीय आसुदेव भाई , अच्छी गज़ल कही है आपने , दिली बधाइयाँ स्वीकार करे ।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 5, 2016 at 2:31pm

पांचवे  में तकाबुले रदीफैन  है , आदरणीय 


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Comment by मिथिलेश वामनकर on December 4, 2016 at 9:06pm

आदरणीय बासुदेव जी, ग़ज़ल का बढ़िया प्रयास हुआ है किन्तु ईता दोष के कारण ग़ज़ल होते-होते रह गई. आदरणीय समर कबीर जी ने स्पष्ट किया है. इस सम्बन्ध में चूक से बचने के लिए "ना भी मना है" को रदीफ़ मानिए तो स्पष्ट हो जाता है कि काफिया निर्धारण त्रुटिपूर्ण है. बोल, छोड़, सोच, खोज आपस में काफिया नहीं हो सकते. इस प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई. सादर 

Comment by Samar kabeer on December 4, 2016 at 2:18pm
क़ाफिये का पिछला शब्द जो बार-बार आता है उसे हर्फ़-ए-रवी कहते हैं,जिसका पालन करना अनिवार्य है,आपके 'ना'क़ाफिये का पिछला शब्द है 'ल'जो हर शैर में बदल रहा है,इसलिये ये मान्य नहीं,आपका क़ाफ़िया हुआ 'ना'और उसका हर्फ़-ए-रवी हुआ 'ल'जो बार बार नहीं आरहा है, बदल रहा है,'ल','ड' आदि इसलिये ये नहीं लिया जा सकता,उम्मीद है,बात स्पष्ट हो गई होगी ?
Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on December 3, 2016 at 8:36pm
आदरणीय समर साहब आपका सुझाव सर आँखों पर। एक जिज्ञासा है। जैसे मतले में बोलना और छोड़ना दो शब्द मैंने लिए और "अना" की अधिकतम समानता को हर शेर में निभाया। यहाँ यह अना स्वरांत क्यों नहीं स्वीकृत हुआ। सादर।
Comment by Samar kabeer on December 3, 2016 at 8:26pm
मतला यूँ कर लीजिये:-
"छोड़ना साँस का भी मना है
बात को बोलना भी मना है"
Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on December 3, 2016 at 6:44pm
आदरणीय समर कबीर साहब'आ' स्वरांत या 'ना' व्यंजन का काफ़िया मान्य नहीं है। मैं आ स्वरांत का काफ़िया रखना चाहता हूँ तो कृपा कर बताएँ कि मतले में क्या परिवर्तन करूँ।
Comment by Samar kabeer on December 3, 2016 at 2:42pm
जनाब बासुदेव अग्रवाल'नमन'जी आदाब,ग़ज़ल आपने अच्छी कही है,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
क़ाफ़ियों का चयन सही नहीं है,अगर 'बोलना'क़ाफ़िया रखना है तो आगे'तोलना',खोलना'आदि क़ाफिये होंगे,और अगर 'छोड़ना'क़ाफ़िया रखना है तो आगे के क़ाफिये 'तोडना','मोड़ना' क़ाफिये आएंगे,देखियेगा ।

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