बह्र : २१२२ २१२२ २१२
प्यार की धुन को बजाता जायगा
राज़ जीवन का सुनाता जायगा |
पल दो पल की जिंदगी होगी यहाँ
दोस्ती सबसे निभाता जायगा |
बाँटता जाएगा मोहब्बत सदा
दोस्त दुश्मन को बनाता जायगा |
पेट खुद का चाहे हो खाली मगर
खाना भूखों को खिलाता जायगा |
ले धनी का साथ अपनी राह में
मुफलिसों को भी मिलाता जायगा |
छोड़ नफरत द्वेष हिंसा औ घृणा
प्रेम मोहब्बत सिखाता जायगा |
उस फ़रिश्ते की प्रतीक्षा है अभी
स्वर्ग धरती को बनाता जायगा |
© कालीपद ‘प्रसाद’
Comment
आदरणीय समीर कबीर साहिब ,आदाब , मैंने आपसे दुबारा देखने के लिए इसीलिए निवेदान किया था क्योंकि मुझे अपनी मात्रा गणना ठीक लग रहा था | मैंने मोहब्बत को १२२ के बदले २२२ ले रहा था | कृपया बुरा न माने | अभी तो आप से बहुत कुछ सीखना है |
सादर
आदरणीय महेंद्र कुमार जी , आप निश्चिन्त रहे ,आ समीर कबीर साहब तो ग़ज़ल के बादशाह है , उनको कोई कैसे अमान्य कर सकते है ,ऐसी हिम्मत मैं तो कभी नहीं कर सकता हूँ | मैं आ समीर कबीर साहिब ,आ योगराज जी ,आ, सौरभ पाण्डेय जी ,आ मिथिलेश वामन कर जी से प्रश्न करता हूँ अपनी शंका मिटाने के लिये और निवेदन करता हूँ मेरी गलती निकालने के लिए जिससे मेरी रचना दोषमुक्त हो जाय |
ग़ज़ल को समय देने के लिए शुक्रिया
सादर
आदरणीया मिथिलेश वामनकर जी ,बहुत बहुत धन्यवाद आपको विस्तार से बताने के लिए | मैंने मोहब्बत को २२२ ही लेके मात्र गणना की थी | मुझे पता नहीं था कि ' मो' हमेशा मु और म की तरह एक मात्रिक माना जायगा | इसीलिए मैंने आ समर कबीर साहिब और आप से निवेदन किया मेरी मात्रा गणना को एक बार और देख लें | बहुत बहुत शुक्रिया | आशा है आगे भी अनुग्रह बनाए रखेंगे |
सादर |
और हाँ एक निवेदन और- बजाता जायगा / बजाया जायगा को बजाते जाइये भी किया जा सकता है. यथा
प्यार की इक धुन बजाते जाइए
राग जीवन का सुनाते जाइए
बाँटते जाएँ मुहब्बत ही सदा
दोस्त दुश्मन को बनाते जाइए
द्वेष हिंसा और नफ़रत छोड़कर
बस मुहब्बत ही सिखाते जाइए
मुझे लगता है इससे ग़ज़ल निखर आएगी और जाएगा को जायगा करने की बाध्यता भी नहीं रहेगी. सादर
आदरणीय कालीपद जी, आपकी तक्तीअ में मोहब्बत की मात्रा गणना के कारण दोष आ रहा है. वास्तव में मोहब्बत को इन तीन रूपों में देवनागरी में लिखते हैं-
1. मोहब्बत
2. मुहब्बत
3. महब्बत
अब इन तीन रूपों का उच्चारण देखिये -
1. मो+हब्+बत
2. मु+हब्+बत
3. म+हब्+बत
यहाँ उच्चारण के क्रम में "मो" "मु" या "म" एक मात्रिक या लघु होता है और 'हब्' तथा "बत" शास्वत दो मात्रिक या गुरु होता है.
इस प्रकार मुहब्बत/मोहब्बत/महब्बत का वज्न 122 होता है. जबकि आप इसे "कालीपद" के समान 222 मान रहें हैं. दोनों मिसरों में "मुहब्बत" की तक्तीअ के कारण ही दिक्कत हुई है. आप दोनों मिसरों में देखिये आपका नाम "कालीपद" प्रतिस्थापित करते ही कैसे बह्र में लगते हैं.-
बाँटता जायेगा कालीपद सदा
प्रेम कालीपद सिखाता जायगा
संभवतः मैं अपनी बात स्पष्ट कर सका हूँ. आदरणीय समर कबीर जी जैसे उस्ताद से आपको और मंच को सदैव सही सलाह ही प्राप्त होती है. यदि कोई त्रुटी या मतान्तर होने की स्थिति में वें स्वयं उत्तर भी देते है. बात केवल स्पष्ट करने की थी इसलिए तनिक अपने कहे में स्वतंत्रता ली है. किसी गलती हेतु क्षमा करेंगे ऐसी आशा है. सादर
आदरणीय डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी ,ग़ज़ल को समय देने के लिए तहे दिल शुक्रिया | बजाया जायगा, सुनाया जायगा ,यह साधारण भविष्यत (Idefinite) काल दर्शाता है | बजाता जायगा , यह (continuous future tense ).वह फरिस्ता खुद उस कार्य को करता हुआ जायगा और पूरा करके जायगा |इस बात को ध्यान रखकर मैंने लिखा है |
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी धन्यवाद आपका , निवेदन है कि आप भी एकबार तकती कर लें |
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