चले भी आओ की थोड़ी सी प्रीत निभा लें
वर्ष नया मंगलमय कहने की रीत निभा लें
कहना यह भी था कि
जाते साल के इतने तो उधार बाकी हैं
कुछ मुझ पर कुछ तुम पर उपकार बाकी हैं
शुकराने की सुरमय सरगम सजा लें
वर्ष नया मंगलमय कहने की रीत निभा लें
कहना यह भी था कि
कोई वादा अभी भी अधूरा सा है
आँखों में उम्मीद का चूरा सा है
वादे की हदों की हदें ही मिटा लें
वर्ष नया मंगलमय कहने की रीत निभा लें
कहना यह भी था कि
कुछ चुभने हैं बाकी जो कसकती भी हैं
और कि आँखें संग -संग बरसती भी हैं
चांदनी को चंदा का वास्ता दिला लें
.वर्ष नया मंगलमय कहने की रीत निभा लें
कहना यह भी था कि
अब के आंगन में आम बौराने को है
और यह भी कि कागा कगराने को है
कोयल को उसके नीड़ से हटा दें
वर्ष नया मंगलमय कहने की रीत निभा लें
कहना यह भी था कि
आओ चाह लें अब के हो ही जाए मंगल
बस्ती रह पाए बस्ती जंगल रह पाए जंगल
कबीलों को कन्दरा के कागद थमा दें
वर्ष नया मंगलमय कहने की रीत निभा लें
चले भी आओ की थोड़ी सी प्रीत निभा लें
वर्ष नया मंगलमय कहने की रीत निभा लें
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
मान्य कबीर साहिब महेंद्र कुमार जी ,सुरेन्द्र जी
नया साल मुबारिक रहे .
इसी तरह हौंसला बढ़ाते रहें
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