नवबर्ष पर हार्दिक शुभकामनाये
आओ मिलकर चमन सजायें
गीत नए फिर मिलकर गायें
कुमकुम रोली से रंग धरती
दर पर वन्दनवार लगाये
जान दे रहे हैं सरहद पर
आज भारती के जो लाल
उनके सीने हैं फौलादी
उन्हें डराएगा क्या काल
मुल्क पड़ोसी को अब आओ
हम उसकी औकात दिखाएं
आओ मिलकर चमन सजायें
गीत नए फिर मिलकर गायें
अश्क बहाने से होती
तौहीन शेर दिल वीरों की
अश्कों से बलिदान चमक
फीकी पड़ती इन हीरों की
अमर शहीदों के जयकारे
गली गली में आज लगायें
आओ मिलकर चमन सजायें
गीत नए फिर मिलकर गायें
हिन्दू मुस्लिम सिक्ख इसाई
सबका है बलिदान बड़ा
महल शहादत से ही सबके
लोकतंत्र का अडिग खड़ा
जाती पांति के भेद भुलाकर
आओ सबको गले लगायें
आओ मिलकर चमन सजायें
गीत नए फिर मिलकर गायें
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरनीय आशुतोष भाई , ओज पूर्ण अच्छी गीत रचना की है , हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार करें ।
आदरणीय मिथिलेश जी ..आपके मार्गदर्शन से गीत बिधा को पहली बार थोडा समझ सका ..आगे के प्रयासों पर आपकी प्रतिक्रियासे मुझे अपने गीतों को संवारने में निश्चित ही मदद मिलेगी .हार्दिक धन्यवाद और सादर प्रणाम के साथ
आदरणीय मित्र आशुतोष जी, मैंने आपके गीत को हलके-हलके गा कर देखा... बहुत ही अच्छा लगा। हार्दिक बधाई।
आदरणीय आशुतोष जी, बहुत बढ़िया गीत लिखा है आपने. गीत की प्रस्तुति इस तरह हो तो वह आकर्षक हो जाता है-
आओ मिलकर चमन सजायें, गीत नए फिर मिलकर गायें
दर पर वन्दनवार लगायें
जान दे रहे हैं सरहद पर, भारत माँ के लाल सभी
जिनके सीने हैं फौलादी, उनसे डरते काल सभी
मुल्क पड़ोसी को अब आओ,
हम उसकी औकात दिखाएं
अश्क बहाने से होती तौहीन शेर दिल वीरों की
अश्कों से बलिदान चमक फीकी पड़ती हैं हीरों की
अमर शहीदों के जयकारे
गली गली में आज लगायें
हिन्दू मुस्लिम सिक्ख इसाई सबका है बलिदान बड़ा
महल शहादत से ही सबके लोकतंत्र का अडिग खड़ा
जाती पांति के भेद भुलाकर
आओ सबको गले लगायें
गीत का मुखड़ा (16) मात्रा आधारित और अंतरा (16-14) बन रहा है.
इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई. सादर
आ० सोलह मात्रिक इस रचना में कही कही मात्रा कम या अधिक हुयी है उसे जांच ले . बाकी सुन्दर रचना .
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