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आओ मिलकर चमन सजायें -आशुतोष

नवबर्ष पर हार्दिक शुभकामनाये 

आओ मिलकर चमन सजायें

गीत नए फिर मिलकर गायें

कुमकुम रोली से रंग धरती

दर पर वन्दनवार लगाये

जान दे रहे हैं सरहद पर

आज भारती के जो लाल

उनके सीने हैं फौलादी

उन्हें डराएगा क्या काल

मुल्क पड़ोसी को अब आओ

हम उसकी औकात दिखाएं

आओ मिलकर चमन सजायें

गीत नए फिर मिलकर गायें

अश्क बहाने से होती

तौहीन शेर दिल वीरों की

अश्कों से बलिदान चमक

फीकी पड़ती इन हीरों की

अमर शहीदों के जयकारे

गली गली में आज लगायें

आओ मिलकर चमन सजायें

गीत नए फिर मिलकर गायें

हिन्दू मुस्लिम सिक्ख इसाई

सबका है बलिदान बड़ा

महल शहादत से ही सबके

लोकतंत्र का अडिग खड़ा

जाती पांति के भेद भुलाकर

आओ सबको गले लगायें

आओ मिलकर चमन सजायें

गीत नए फिर मिलकर गायें

मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 4, 2017 at 5:00pm

आदरनीय आशुतोष भाई , ओज पूर्ण अच्छी गीत रचना की है , हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार करें ।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 3, 2017 at 12:17pm

आदरणीय मिथिलेश जी ..आपके मार्गदर्शन से गीत बिधा को पहली बार थोडा समझ सका ..आगे के प्रयासों पर आपकी प्रतिक्रियासे मुझे अपने गीतों को संवारने में निश्चित ही मदद मिलेगी .हार्दिक धन्यवाद और सादर प्रणाम के साथ 

Comment by vijay nikore on January 3, 2017 at 11:43am

आदरणीय मित्र आशुतोष जी, मैंने आपके गीत को हलके-हलके गा कर देखा... बहुत ही अच्छा लगा। हार्दिक बधाई।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 3, 2017 at 12:16am

आदरणीय आशुतोष जी, बहुत बढ़िया गीत लिखा है आपने. गीत की प्रस्तुति इस तरह हो तो वह आकर्षक हो जाता है-

आओ मिलकर चमन सजायें, गीत नए फिर मिलकर गायें

दर पर वन्दनवार लगायें

जान दे रहे हैं सरहद पर, भारत माँ के लाल सभी 

जिनके सीने हैं फौलादी, उनसे डरते काल सभी 

मुल्क पड़ोसी को अब आओ,

हम उसकी औकात दिखाएं

अश्क बहाने से होती तौहीन शेर दिल वीरों की

अश्कों से बलिदान चमक फीकी पड़ती हैं हीरों की

अमर शहीदों के जयकारे

गली गली में आज लगायें

हिन्दू मुस्लिम सिक्ख इसाई सबका है बलिदान बड़ा

महल शहादत से ही सबके लोकतंत्र का अडिग खड़ा

जाती पांति के भेद भुलाकर

आओ सबको गले लगायें

गीत का मुखड़ा (16) मात्रा आधारित और अंतरा (16-14) बन रहा है.

इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई. सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 1, 2017 at 11:15pm
आदरणीय समर सर आपका सतह उत्साह वर्धन करना और मार्गदर्शन हताश नहीं होने देता है लगभग सभी रचनाओ पर आपकी प्रतिकिया ऐ अपनी और दूसरी रचनाओं में हुयी चूक का पता चलता है और तैनाओं को सुधारने में मदद मिलती है नए बर्ष पर आपको सादर प्रयाम करते हुए हार्दिक शुभकामनायें प्रेषित कर रहा हूँ सादर
Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 1, 2017 at 11:09pm
आदरणीय गोपाल सर आदरणीय मिथिलेश जी के गीत को पढ़कर पहली बार गीत लिखा है इसके तकनीकी पक्ष की मुझे कोई जानकारी नहीं है आदरणीय सर गीत का मेरा प्रथम प्रयास है सर इसमें भी मात्र ग़ज़ल जैसे गिनी जाती हैअथवा कोई अलग तरीका है मैंने तो बस गाते हुए लिखा है मात्राओं के बिषय में आपका मार्गदर्शन का दादर निवेदन है नव बर्ष की हार्दिक शुभकामनायें सादर प्रणाम के साथ
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 1, 2017 at 10:11pm

आ० सोलह मात्रिक इस रचना में कही कही मात्रा कम या अधिक हुयी है उसे जांच ले . बाकी सुन्दर रचना .

Comment by Samar kabeer on January 1, 2017 at 2:59pm
जनाब डॉ.आशुतोष मिश्रा जी आदाब,अच्छी रचना हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
आपको भी नया साल मुबारक हो ।

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