1222 1222 1222 1222 तरही ग़ज़ल
अगर बेटे की भाई से अदावत और हो जाती
मेरे अपने ही घर में इक बगावत और हो जाती
जहाँ खामोशी से मेरी जसामत और हो जाती
वहीं कुछ कहने से मेरे मुसाफत और हो जाती
हिमानी के शिखर पर डाल गलबहियाँ पलक मींचे
युगल प्रेमी यही सोचे क़यामत और हो जाती
सुलगती साँसे जलता तन पिला दो मय ये आँखों की
जहाँ सब कुछ हुआ इतनी इनायत और हो जाती
इधर बेटा उधर भाई पिता करते तो क्या करते
अगर धृतराष्ट्र बनते तो बगावत और हो जाती
वो चिलमन ओट से रह रह के ताकें और छिप जाये
ये मंजर देख दिल कहता शरारत और हो जाती
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
बहुत ही खूबसूरत गज़ल बनी है। हार्दिक बधाई, आशुतोष जी।
हिमानी के शिखर पर डाल गलबहियाँ पलक मींचे
युगल प्रेमी यही सोचे क़यामत और हो जाती
सुलगती साँसे जलता तन पिला दो मय ये आँखों की
जहाँ सब कुछ हुआ इतनी इनायत और हो जाती
इधर बेटा उधर भाई पिता करते तो क्या करते
अगर धृतराष्ट्र बनते तो बगावत और हो जाती
बहुत खूब आदरणीय आशुतोष जी | बधाई |
आ० आशुतोष जी -----बहुत बढ़िया आनन्द आ गया . सादर
इधर बेटा उधर भाई पिता करते तो क्या करते
अगर धृतराष्ट्र बनते तो बगावत और हो जाती......वाह ! खूब.
आदरणीय डॉ. आशुतोष मिश्रा साहब सादर, अच्छी तरही गजल कही है. बहुत-बहुत मुबारकबाद कुबूलें. सादर.
आदरणीय आशुतोष भाई , अच्छी ग़ज़ल कही है दिल से बधाइयाँ स्वीकार करें ।
इधर बेटा उधर भाई पिता करते तो क्या करते
अगर धृतराष्ट्र बनते तो बगावत और हो जाती
इतिहास जीवित हो गया वाह ! बधाई
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