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ग़ज़ल -- जुमलों के तरकश ने तीर उछाले हैं ( दिनेश कुमार 'दानिश' )

22--22--22--22--22--2

जुमलों के तरकश ने तीर उछाले हैं
अच्छे दिन क्या सचमुच आने वाले हैं

नागनाथ और साँपनाथ में फ़र्क नहीं
तन उजले लेकिन मन इनके काले हैं

साँपों को भी दूध पिलाते हैं अक्सर
ज़ह्नों पर हम सब के कैसे ताले हैं

रोटी की फिर देखो बंदरबाँट हुई
कुछ भूखों के मुँह से छिने निवाले हैं

राहनुमा की शक़्ल में रहज़न हैं सारे
रात की आहट से ही डरे उजाले हैं

बारिश से बचते हैं जब तक रँगे सियार
शेर को भी तब तक जीने के लाले हैं

ना मुमकिन है 'दानिश' जी बोलो किसने
सागर की मौजों पर पहरे डाले हैं

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by नाथ सोनांचली on January 4, 2017 at 2:17pm
आदरणीय दिनेश जी सादर अभिवादन, वर्तमान राजनेताओ और जुम्लेबाजियो पर बेहतरीन गजल कही आपने, वैसे तो हर शैर दमदार है, फिर भी
नागनाथ और साँपनाथ में फ़र्क नहीं
तन उजले लेकिन मन इनके काले हैं

हम साँपों को दूध पिलाते दानिस्ता
ज़ह्नों पर हम सब की आख़िर ताले हैं

क्या खूब हुए है, दाद के साथ मुबारकबाद कबूल फरमाएं।
Comment by नाथ सोनांचली on January 4, 2017 at 2:17pm
आदरणीय दिनेश जी सादर अभिवादन, वर्तमान राजनेताओ और जुम्लेबाजियो पर बेहतरीन गजल कही आपने, वैसे तो हर शैर दमदार है, फिर भी
नागनाथ और साँपनाथ में फ़र्क नहीं
तन उजले लेकिन मन इनके काले हैं

हम साँपों को दूध पिलाते दानिस्ता
ज़ह्नों पर हम सब की आख़िर ताले हैं

क्या खूब हुए है, दाद के साथ मुबारकबाद कबूल फरमाएं।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 4, 2017 at 11:20am

आदरणीय दिनेश भाई, बहुत शानदार ग़ज़ल कही है आपने. शेर दर शेर दाद के साथ मुबारकबाद कुबूल फरमाएं. इस शेर का तो जवाब नहीं-

बारिश से बचते हैं जब तक रँगे सियार
शेर को भी तब तक जीने के लाले हैं

वाह वाह 

सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 4, 2017 at 9:10am
भाई दिनेश जी वर्तमान राजनीतिक संदर्भो को चित्रित करती इस ग़ज़ल के लिए ढेर सारी बधाई स्वीकार करें सादर

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