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//एक सीमा में है अल्फाज़ पे सख़्ती लाज़िम
हद में रह कर जो करेंगे वो धमाल अच्छा है।।//
सभी शेर बहुत अच्छे लगे ... हर शेर दाद के काबिल । हार्दिक बधाई।
आदरनीय सुरेन्द्र भाई ,ग़ालिब की तरह पर खूबसूरत गज़ल कही है , मुबारकबाद कुबूल कीजिये
आदरणीय सुरेन्द्र जी, चचा ग़ालिब की जमीन पर लाज़वाब ग़ज़ल कही है आपने. दिल खुश कर दिया. हालाते-मुल्क पर एक से बढ़कर एक अशआर कहें है आपने. इस शानदार ग़ज़ल पर दिल से दाद कुबूल फरमाएं. वाह वाह वाह.
सादर
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