2122 2122 2122 212
किसने होंटों पे तबस्सुम को सजाया कौन था
छुप के दिल में वस्ल का दीपक जलाया कौन था
साँसे मेरी जीस्त मेरी मेरा अपना था वजूद
धडकनों पे मेरी जिसने हक जमाया कौन था
जब कभी भीगी तख़य्युल में कहीं पलकें मेरी
शबनमी उन झालरों से मुस्कुराया कौन था
गुफ्तगू के उस सलीके पर मेरा तन मन निसार
बातों बातों में मुझे अपना बनाया कौन था
जब तेरी फ़ुर्कत में भीगा था मेरा तकिया कभी
सुब्ह को फिर धूप बन जिसने सुखाया कौन था
जब जमाने ने उगाये ख़ार मेरी राह में
तोड़कर महताब कदमों में बिछाया कौन था
जी रही थी तल्खियों के साथ जब ये जिन्दगी
मेरे कानों में मुहब्बत फुसफुसाया कौन था
----------मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरनीया राजेश जी , इस खूबसूरत गज़ल के लिये मेरी बधाइयाँ स्वीका र करें ।
जी रही थी तल्खियों के साथ जब ये जिन्दगी
मेरे कानों में मुहब्बत फुसफुसाया कौन था - लाजवाब शेर हुआ ... हार्दिक बधाई ।
इतनी खूबसूरत गज़ल की उमीद आपसे रहती है, और आपने फिर से यह उमीद पूरी करी। बधाई, आदरणीया राज जी।
आदरणीया राजेश दीदी, बहुत कठिन रदीफ़ काफिया लेकर आपने ग़ज़ल कही है. संशोधन के बाद बहुत शानदार ग़ज़ल हुई है. मतला तो जबरदस्त बन गया है. ये शेर बहुत पसंद आये-
साँसे मेरी जीस्त मेरी मेरा अपना था वजूद
धडकनों पे मेरी जिसने हक जमाया कौन था............... वाह वाह
गुफ्तगू के उस सलीके पर मेरा तन मन निसार
बातों बातों में मुझे अपना बनाया कौन था................... अद्भुत
जब तेरी फ़ुर्कत में भीगा था मेरा तकिया कभी
सुब्ह को फिर धूप बन जिसने सुखाया कौन था.................क्या खूब चित्र खींचा है. वाह
शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल फरमाएं. सादर
आद० समर भाई जी आदाब इस ग़ज़ल पर सच में बहुत दिमाग लगाना पड़ा बहुत कोशिशों के बावजूद भी कुछ त्रुटियाँ रह गई पोस्ट करते हुए आपका ही इन्तजार कर रही थी आपने बहुत अच्छी इस्स्लाह दी है .शम्मा से पहले दीपक ही लिखा था न जाने किस बहाव में आकर फिर शम्मा कर दिया | तोडकर महताब कदमों में बिछाया कौन था पहले ये भी सोचा था आपकी इस्स्लाह के अनुसार इसको अभी एडिट करती हूँ आपका दिल से बहुत बहुत शुक्रिया .
आद० डॉ० आशुतोष जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई आपका तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया |
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