2122 2122 212
सुन हवाओं की जवाँ सरगोशियाँ
दूधिया चादर में लिपटी वादियाँ
देख भँवरे की नजर में शोखियाँ
चुपके चुपके हँस रही थीं तितलियाँ
नींद में सोये कँवल भी जग उठे
गुफ्तगू जब कर रही थी किश्तियाँ
छटपटाती कैद में थी चाँदनी
हुस्न को ढाँपे हुए थी बदलियाँ
मुट्ठियों में भींच के सिन्दूर को
मुन्तज़िर खुर्शीद की थी रश्मियाँ
फिक्र-ए-शाइर पे भी छाया नूर सा
देख कातिल हुस्न की ये मस्तियाँ
चाहती है कौन बंधन जाल का
मशविरा ये कर रही थी मछलियाँ
घोंसले में जिन्दगी महफूज़ थी
शाख़ ने थामी हुई थी बिजलियाँ
हो गई कलियाँ शहाबी इश्क में
राज खोलें सब लबों की सुर्खियाँ
---------मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आद० रोहिताश्व मिश्रा जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई आपका तहे दिल से शुक्रिया .
आद० गिरिराज जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरी ग़ज़ल धन्य हुई दिल से बहुत बहुत शुक्रिया आपका |
मुहतरम जनाब उस्मानी जी ,आपकी इस होंस्लाफ्जाई का दाद का तहे दिल से बहुत बहुत शुक्रिया आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ |
Vaah.....
Bahut pyaari si ghazal..hai...
Vaaaah
आदरनीया राजे श जी , बढिया गज़ल कही है आपने , सभी अश आर अच्छे निकाले हैं आपने , बधाइयाँ स्वीकार करें । आ. समर भाई जी बातों का ख़्याल कीजियेगा . साथ ही मतले पर आ. मिथिलेश भाई जी की सलाह भी खूब है ।
मिथिलेश भैय्या आपका तहे दिल से शुक्रिया .आपकी इस्स्लाह भी स्वागत योग्य है बहुत अच्छा है | आप लोगों की इस्स्लाह से ग़ज़ल के सौन्दर्य में वाकई निखार आया है बहुत शुक्रगुजार हूँ .
आद० समर भाई जी ,बहुत बहुत शुक्रिया. मूल पोस्ट में मतले में सुधार कर लिया है .
आदरणीया राजेश दीदी, बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने. दीदी आपका मतला मैंने कुछ यूं गुनगुनाया है-
जब हवाओं में हुई सरगोशियाँ
दूधिया चादर में लिपटी वादियाँ
बाकी अशआर एक से बढ़कर एक हुए है. मक्ता भी जबरदस्त है. इस शानदार ग़ज़ल पर दाद के साथ मुबारकबाद कुबूल फरमाएं. सादर
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