For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल- रोज करता खेल शह औ मात का

2122       2122       212

रोज करता खेल शह औ मात का।

रहनुमा पक्का नहीं अब बात का।।

कब पलट कर छेद डाले थालियाँ।

कुछ भरोसा है नहीं इस जात का।।

पत्थरों के शह्र में हम आ गए।

मोल कुछ भी है नहीं जज़्बात का।।

ख्वाहिशें जब रौंदनी ही थी तुम्हे।

क्यूँ दिखाया ख़्वाब महकी रात का।।

इंकलाबी हौसलें क्यों छोड़ दें।

अंत होगा ही कभी ज़ुल्मात का।।

मेंढकों थोड़ा अदब तो सीख लो।

क्या भरोसा बेतुकी बरसात का।।

पीढ़ियों से तख़्त पर काबिज़ तुम्ही।

कौन दोषी आज के हालात का।।

बस बजाना गाल जिनका काम है।

क्या पता उनको पवन औकात का।।

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 686

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by डॉ पवन मिश्र on January 20, 2017 at 5:35pm

आद. डॉ आशुतोष मिश्र जी। इस् उत्साहवर्धन के लिये हृदय से आभार

Comment by डॉ पवन मिश्र on January 20, 2017 at 5:34pm

आद जयनित मेहता जी, बहुत बहुत आभार आपका

Comment by Samar kabeer on January 20, 2017 at 2:58pm
तब मैंने रवि जी की ग़ज़ल पढ़ी थी,इसलिये ये धोका हुआ ।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 20, 2017 at 11:48am

आदरणीय डॉ पवन जी ..हर शेर उम्दा ..वर्तमान संदर्भो को उकेरती, राजनीतिक परिद्रश्य की स्थिति से अवगत कराती शानदार शसक्त ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें 

Comment by डॉ पवन मिश्र on January 20, 2017 at 9:14am
आद.सुशील सरना जी। शेर आप तक पहुंचे,कहना सार्थक हो गया। इस हौसला आफजाई के लिये तहे दिल से शुक्रिया
Comment by डॉ पवन मिश्र on January 20, 2017 at 9:08am
आद.सुरेन्द्र नाथ जी,बहुत बहुत शुक्रिया जनाब
Comment by डॉ पवन मिश्र on January 20, 2017 at 9:06am
आद. मिथलेश वामनकर जी,इस हौसला आफजाई के लिये तहे दिल से शुक्रिया
Comment by डॉ पवन मिश्र on January 20, 2017 at 9:05am
हाँ आद. समर साहब, आद. रवि शुक्ल जी ने इस पर ग़ज़ल कही है।
Comment by जयनित कुमार मेहता on January 20, 2017 at 5:21am
आदरणीय पवन जी, बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है आपने। सभी शेर खूबसूरत हुए हैं। हार्दिक बधाई आपको।
Comment by Sushil Sarna on January 17, 2017 at 6:04pm
रोज करता खेल शह औ मात का।

रहनुमा पक्का नहीं अब बात का।।

कब पलट कर छेद डाले थालियाँ।

कुछ भरोसा है नहीं इस जात का।।

वाह बहुत हक़ीक़ी ग़ज़ल कही है सर अपने। हार्दिक बधाई सर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम मथानी जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार "
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार "
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service