"तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो", बालों में अंगुलियां फिराते हुए उसने कहा|
"हूँ", कहते हुए वह खड़ी होने लगी|
"थोड़ी देर और बैठो ना", उसने उसका हाथ पकड़ कर खींच लिया| वह वापस बिस्तर पर बैठ गयी|
"सच में तुमको देखे बिना चैन नहीं मिलता", एक बार फिर उसने उसका हाथ पकड़ा|
वह उसको लगभग अनदेखा करते हुए बैठी रही| थोड़ी देर बाद वह फिर से उठने लगी तो उसने कहा "तुम जवाब क्यों नहीं देती, क्या मैं तुम्हें अच्छा नहीं लगता?
"लगते तो हो, लेकिन तुम्हीं नहीं, बाकी सब भी", उसने एक गहरी नजर डाली और खड़ी हो गयी|
उसको बुरा लगा, सबके बराबर बना दिया उसने|
"मैं बाकियों जैसा नहीं हूँ, तुमसे एक रिश्ता सा जुड़ गया है अब", और भी कुछ बोलना चाहता था वह लेकिन उसकी नजर से सामना होते ही जैसे शब्दों ने उसका साथ छोड़ दिया|
"मुझे यहाँ लाने वाला भी मुझसे बहुत गहरा रिश्ता रखता था, आगे से रिश्ते की बात मत कहना"|
वह दरवाजा खोलकर बाहर निकल गयी, उसने भी चुपचाप कपडे पहने और निकल गया|
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
बहुत बहुत आभार आ डॉ आशुतोष मिश्र जी
इस भाव पूर्ण प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई आदरनीय विनय जी
बहुत बहुत आभार आ शेख शहज़ाद उस्मानी जी आपकी उत्साहवर्धक विस्तृत टिपण्णी के लिए
बहुत बहुत आभार आ नीता कसार जी
बहुत बहुत आभार आ नीलम उपाध्याय जी
बहुत बहुत आभार मोहतरम जनाब मोहम्मद आरिफ साहब
बहुत बहुत आभार मोहतरम जनाब समर कबीर साहब
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