तुम्ही कहो, कैसे आऊँ,
सब छोड़ तुम्हारे पास प्रिये?
एक कृषक कल तक थे लेकिन अब शहरी मजदूर बने।
सृजक जगत के कहलाते थे, वो कैसे मजबूर बने?
वे बतलाते जीवन गाथा, पीड़ा से घिर जाता हूँ।
कितने दुख संत्रास सहे हैं, ये लिख दूँ, फिर आता हूँ।
कर्तव्यों के नव बंधन को तोड़ तुम्हारे पास प्रिये,
तुम्ही कहो, कैसे आऊँ,
सब छोड़ तुम्हारे पास प्रिये?
कौन दिशा में कितने पग अब कैसे-कैसे है चलना?
अर्थजगत के नए मंच पर, कैसे या कितना ढलना?
तथ्य अधूरे समझ सका पर पूर्ण उन्हें समझाना है।
छोड़ अधूरे काम प्रिये अब आना भी क्या आना है?
आज बताये उन रस्तों को मोड़ तुम्हारे पास प्रिये,
तुम्ही कहो, कैसे आऊँ,
सब छोड़ तुम्हारे पास प्रिये?
खेतों की हरियाली का नूतन कर्तव्य निभाना है।
अन्न दान करते हैं जो अब उनका कर्ज चुकाना है।
अम्बरीश मैं, निकट खड़ा हर एक लगे दुर्वासा है।
तन पूरित है मेरा लेकिन मन प्यासा का प्यासा है।
तन के ताने-बाने की बस होड़ तुम्हारे पास प्रिये,
तुम्ही कहो, कैसे आऊँ,
सब छोड़ तुम्हारे पास प्रिये?
व्यस्त जगत है अपने में ही, किसको है अवकाश यहाँ?
भूखे प्यासे बेघर निर्धन, अब तक सिर्फ हताश यहाँ।
प्यार मुहब्बत और दिलासा ना पाई है आस कभी ।
खुशियाँ, सुख के क्षण क्या होते? इनसे हैं अनजान सभी।
इक रिश्ते का कम से कम गठजोड़ तुम्हारे पास प्रिये,
तुम्ही कहो, कैसे आऊँ,
सब छोड़ तुम्हारे पास प्रिये?
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(मौलिक व अप्रकाशित) © मिथिलेश वामनकर
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Comment
आदरणीय नरेन्द्र सिंह जी, सराहना हेतु हार्दिक आभार आपका. सादर
आदरणीय पंकज जी, सराहना हेतु हार्दिक आभार. सादर
आदरणीय कालीपद प्रसाद जी, गीत की सराहना हेतु हार्दिक आभार. सादर
आदरणीया राजेश दीदी, गीत आपको पसंद आया, जानकार ख़ुशी हुई. सराहना एवं मार्गदर्शन हेतु हार्दिक आभार. आपने बहुत बढ़िया मुखड़ा सुझाया है लेकिन तुकांतता 'ओड़' निर्धारित है अतः 'आस' तुकांत वाला मुखड़ा रखना उचित नहीं होगा. सादर
आदरणीय मोहम्मद आरिफ़ जी, सराहना हेतु हार्दिक आभार. सादर
आदरणीय गिरिराज सर, गीत पसंद करने एवं मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार. आपने बहुत बढ़िया मुखड़ा सुझाया है लेकिन तुकांतता 'ओड़' निर्धारित है अतः 'आस' तुकांत वाला मुखड़ा रखना उचित नहीं होगा. सादर
बहुत सुन्दर
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी ,सभी वंद बहुत सुन्दर हुए है | मुखड़े बारे में तो चर्चा विद्वानों के किया ही है |हार्दिक बधाई |
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