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लहराता खिलौना (लघुकथा)

देश के संविधान दिवस का उत्सव समाप्त कर एक नेता ने अपने घर के अंदर कदम रखा ही था कि उसके सात-आठ वर्षीय बेटे ने खिलौने वाली बन्दूक उस पर तान दी और कहा "डैडी, मुझे कुछ पूछना है।"

 

नेता अपने चिर-परिचित अंदाज़ में मुस्कुराते हुए बोला, "पूछो बेटे।"

 

"ये रिपब्लिक-डे क्या होता है?" बेटे ने प्रश्न दागा।

 

सुनते ही संविधान दिवस के उत्सव में कुछ अवांछित लोगों द्वारा लगाये गए नारों के दर्द ने नेता के होंठों की मुस्कराहट को भेद दिया और नेता ने गहरी सांस भरते हुए कहा,

"हमें पब्लिक के पास बार-बार जाना चाहिये, यह हमें याद दिलाने का दिन होता है रि-पब्लिक डे..."

 

"ओके डैडी और उसमें झंडे का क्या काम होता है?" बेटे ने बन्दूक तानी हुई ही थी।

 

नेता ने उत्तर दिया, "जैसे आपने यह गन उठा रखी है, वैसे ही हमें झंडा उठाना पड़ता है।"

 

"डैडी, मुझे भी झंडा खरीद कर दो... नहीं तो मैं आपको गोली से मार दूंगा" बेटे का स्वर पहले की अपेक्षा अधिक तीक्ष्ण था।

 

नेता चौंका और बेटे को डाँटते हुए कहा, "ये कौन सिखाता है आपको? बन्दूक अच्छी नहीं लगती मेरे बेटे के हाथ में।"

और उसने वहीँ खड़े ड्राईवर को कुछ लाने का इशारा कर अपने बेटे के हाथ से बन्दूक छीनते हुए आगे कहा,

“अब आप गन से नहीं खेलोगे, झंडा मंगवाया है, उससे खेलो।”

 

कहते हुए नेता बिना पीछे देखे सधे हुए क़दमों से अंदर चला गया।

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on February 2, 2017 at 10:03am

बहुत-बहुत आभार आदरणीया सीमा मिश्रा जी, आदरणीया राजेश कुमार जी, आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी साहब, आदरणीया नीता कसार जी, आप सभी को यह प्रयास ठीक लगा और लघुकथा के मर्म तक पहुँच कर अपनी टिप्पणी द्वारा आप सभी ने मेरा उत्साहवर्धन किया| सादर,

Comment by Nita Kasar on January 29, 2017 at 7:48pm
बच्चे घर से ही सीखते है अपनी आंखो के सामने कुसंसकार पनपते देख नेता के पाँव तले जमीन खिसकना ही थी आज की राजनीति पर कटु व्यंग्य करती कथा के लिये बधाई आद० चंद्रेश छतलानी जी ।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on January 29, 2017 at 10:25am
आदरणीय डॉ. चन्द्रेश कुमार छतलानी जी लघुकथाओं में पंचपंक्ति/पंचपंक्तियों के अलावा सम्पूर्ण रचना के संवादों/प्रतीकों में भी मुझे बेहतरीन सन्देश सम्प्रेषण होता दिखता है कथ्य उभारते हुए। ऐसा ही इस उत्कृष्ट लघुकथा में भी है--
1- // "ये रिपब्लिक-डे क्या होता है?" //..देश के भविष्य (बच्चे) की अज्ञानता !!!!
2- // यह हमें याद दिलाने का दिन होता है रि-पब्लिक डे...//
नेताओं की हक़ीक़त/बोझिल गतिविधियाँ

3- // हमें झंडा उठाना पड़ता है।"//.. स्वीकारोक्ति व सच्चाई
4- // झंडा मंगवाया है, उससे खेलो// ..तंज/व्यंग्य/हक़ीक़त

बेहतरीन सृजन के लिए सादर हार्दिक बधाई आपको आदरणीय डॉ. चन्द्रेश कुमार छतलानी जी।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 27, 2017 at 5:38pm

“अब आप गन से नहीं खेलोगे, झंडा मंगवाया है, उससे खेलो।”----झंडे के साथ खेल ही तो रहे हैं नेता लोग ..तो बच्चों को यही तो कहेंगे की झंडे से खेलो ...वाह्ह्ह्हह जबरदस्त पंच लाइन आज की नेतागिरी ,मौकापरस्त राजनीति पर प्रहार करती हुई .बहुत बहुत बधाई इस सामयिक लघु कथा के लिए आद० चंद्रेश कुमार छत्लानी जी .

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