कुछ फ़र्द मंच की नज़्र :
न सही तेरी नज़रों को मुहब्बत की तमन्ना मगर !
तेरी नज़रें , नज़रों की हमराज़ तो बन सकती थीं !!1!!
माना करीबी दिल को ख़ुशगवार लगती है !
मगर दूरी में भी कम दिलकशी नहीं होती !!2!!
जाने क्यूँ आ गयी शर्म घटाओं को आज !
शायद किसी ने रुख़ पे ज़ुल्फें बिखेर दीं !!3!!
क्यूँ अँधेरे भी उजले से लगने लगे !
शायद, प्यार रूठा लौट आया है !!4!!
आये न थे तो चश्म तर-बतर थी !
गए पलट के तो कयामत ढा गए !!5!!
सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
आदरणीय Mohammed Arif साहिब प्रस्तुति पर आपकी आत्मीय सराहना का तहे दिल से शुक्रिया।
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