#गजल#
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22 22 22 22
जैसे-तैसे आगे आता
मैं भी जनसेवक हो जाता!1
सेवा के आयाम बहुत हैं
अपनी सब करतूत गिनाता!2
नकली आँसू के छींटे दे
मन के माफिक मेवे खाता!3
पाँच बरस मुझको मिल जाते
चार पहर रोते फिर दाता!4
भाषा को हथियार बनाकर
जोर लगा मैं शोर मचाता!5
जात-धरम के पेड़ फफनते
थोड़े बिरवे और बढ़ाता!6
मेरी खातिर भींग कहें सब-
'ले लो मेरा,ले लो छाता!'7
चाहे जितने आँसू देकर
उम्मीद- घटा बन मैं छाता!8
सेंध तिजोरी में लग जाती
टेर मुलाजिम शीश झुकाता!9
मौलिक व अप्रकाशित@मनन
Comment
जात-धरम के पेड़ फफनते
थोड़े बिरवे और बढ़ाता!6
मेरी खातिर भींग कहें सब-
'ले लो मेरा,ले लो छाता!'7
बहुत ही सुन्दर और सत्य को उजागर करती हुई रचना!
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