For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गजल(पूछते लोग सब.....)

212 212 212 212
 लोग सब पूछते,  हम कहाँ जा रहे
आ गये दिन भले या अभी आ रहे।2

कौन क्या कह गया याद अब है कहाँ
रेवड़ी देखकर खूब ललचा रहे।2

कुल जमा देखिये बादलों की कला
हर बरस बूँद में खार बरसा रहे।3

रात के हाथ से बुझ गयीं बत्तियाँ
बोलते भी जरा कौन दिन ला रहे।4

जोर से पीटते ढ़ोर सब ढ़ोल हैं
कोकिला चुप हुई काग बस गा रहे।5
मौलिक व अप्रकाशित@

Views: 712

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Manan Kumar singh on March 9, 2017 at 9:57am
आदरणीय गिरिराज भाई ,बहुत बहुत आभार आपका;आपकी सलाह शिरोधार्य है।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 9, 2017 at 9:38am

आदरनीय मनन भाई , अच्छी गज़ल कही है , दिल से बधाइयाँ स्वीकार करें । कुछ सलाह यूँ ही दे रहा हूँ सही लगे तो स्वीकार करें ....

लोग सब पूछते,  हम कहाँ जा रहे  --   हैं सभी पूछते हम कहाँ जा रहे
आ गये दिन भले या अभी आ रहे। - 

कौन क्या कह गया याद अब है कहाँ     --  कौन क्या कह गया याद वो क्यूँ करे
रेवड़ी देखकर खूब ललचा रहे।                रेवड़ी देख जो आज ललचा रहे     

Comment by Manan Kumar singh on March 8, 2017 at 9:54pm
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय महेंद्र कुमार जी,सादर।
Comment by Mahendra Kumar on March 8, 2017 at 9:23pm
बहुत बढ़िया ग़ज़ल है आदरणीय मनन जी। हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। सादर।
Comment by Manan Kumar singh on March 8, 2017 at 8:06pm
शेर 4 की उला:

रात के हाथ से बुझ गईं बत्तियाँ
Comment by Manan Kumar singh on March 8, 2017 at 8:05pm
शेर 4 की उला:

रात के हाथ से बुझ गईं बत्तियाँ
Comment by Manan Kumar singh on March 8, 2017 at 7:59pm
आदरणीय समर साहिब आदाब एवं शुक्रिया आपका।आपने इंगित कराया,अब शेर लय में आ जायेगा,सादर।
Comment by Manan Kumar singh on March 8, 2017 at 7:57pm
आदरणीय सुरेन्द्र नाथ जी,आपके प्रेरणा पूर्ण कथन से उत्साहित हूँ;आभार आपका।
Comment by Samar kabeer on March 8, 2017 at 5:51pm
जनाब मनन कुमार सिंह जी आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
4थे शैर का ऊला मिसरा लय में नहीं है,देखियेगा ।
Comment by नाथ सोनांचली on March 8, 2017 at 4:49pm
आदरणीय मनन कुमार जी अदब, कटाक्ष। व्यंग से लबरेज इस गजल पर मेरी अनन्त शुभकामनायेंप्रेषित हैं

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी रिश्तों पर आधारित आपकी दोहावली बहुत सुंदर और सार्थक बन पड़ी है ।हार्दिक बधाई…"
23 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
Sunday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service