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2122 2122 212

बस झुके हमको तो सबके सर मिले
बुत यहाँ भारी ज़माने पर मिले

काँच के जिनके बनें हैं घर यहाँ
हाथ में उनके ही बस पत्थर मिले।

विष गले में रख सके जग का सकल
है कहाँ मुमकिन कि फिर शंकर मिले।

दिल में उनके है धुआँ गम का बहुत
पर मिले जिससे भी वो हँसकर मिले

फूल को कैसे समझ लें फूल जब
पास उसके ही हमें खंजर मिले

मिल गया अब रहनुमा देखो नया
झोपड़ी को भी नया छप्पर मिले

हैं जहाँ पर दौलतों की रौनकें
*पत्थरों के दिल वहीँ अक्सर मिले।*

मौलिक/अप्रकाशित

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Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on March 22, 2017 at 2:15pm
आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी,प्रयास का अनुमोदन,सराहना और प्रोत्साहन करने के लिए तहेदिल हारदिक आभार!
Comment by Mohammed Arif on March 22, 2017 at 10:51am
वाह वाह वाह बहुत बेहतरीन अशआर तरही ग़ज़ल के । शेर दर शेर दाद के साथ मुबारक़बाद क़ुबूल कीजिए ।

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