सुकून .......
ढूंढता हूँ
अपने सुकून को
स्वयं की
गहराईयों में
छुपे हैं जहां
न जाने
कितने ही
जन्मों के जज़ीरे
अंधे -अक़ीदे
तसव्वुर में तैरते
कुछ धुंधले से
साये
साँसों के मोहताज़
अधूरी तिश्नगी के
कुछ लम्हे
ज़िस्म पर आहट देते
ख़ौफ़ज़दा
कुछ लम्स
खो के रह गया हूँ मैं
ग़ुमशुदा दौर के शानों पर ग़ुम
अपने सुकून को ढूंढते ढूंढते
क्या
कर सकूंगा इस्तक़बाल
जन्मों से ग़ुम
अपने
सुकून का ?
शायद हाँ
शायद नहीं
(जज़ीरे = द्वीप , अंधे -अक़ीदे = अंधी आस्थाएं )
सुशील सरना
मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
आदरणीय Mahendra Kumar जी सृजन में निहित भावों को अपने स्नेहिल शब्दों से मान देने का हार्दिक आभार।
आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी सृजन में निहित भावों को अपने स्नेहिल शब्दों से मान देने का हार्दिक आभार।
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