2122 2122 2122 212
सच यहाँ पर कुछ नहीं जब खुद है झूठा आदमी|
जानकर भी आज सब अनजान देखा आदमी|
जग पराया देश है अपना यहाँ कुछ भी नहीं
कुछ दिनों के वास्ते इस जग में आया आदमी|
लोग अपने वास्ते जीते हैं दुनिया में मगर
जो पराया दर्द समझे है वो आला आदमी
ये ख़जाना और दौलत सब यही रह जाएगा
सिर्फ तेरा कर्म ही बस साथ देगा आदमी|
बेवफ़ा सी ज़िन्दगी जिस दिन तुझे ठुकराएगी
आदमी को लाश कहकर ले चलेगा आदमी|
‘मिंटू’ अब भी वक्त है अपने को तू पहचान ले
बीत जाएगा समय तो क्या करेगा आदमी|
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय गिरिराज साहेब
हौसला अफजाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया
आदरनीय बैज नाथ भाई , एक अच्छी गज़ल के लिये आपको दिल से बधाइयाँ । गुणिजन की सलाहों पर गौर कीजियेगा ।
आदरणीय समर साहेब ....आप बिलकुल सही फरमा रहे हैं....'.तू' की जगह ..'वो'' ही सही है ...शुक्रिया
आदरणीय सुरेश साहेब , समीर साहेब व आरिफ साहेब ...हौसला अफजाई के लिए ....... बहुत बहुत शुक्रिया आप सब का |
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