For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बीत जाएगा समय तो क्या करेगा आदमी

2122    2122    2122   212

 

सच यहाँ पर कुछ नहीं जब खुद है झूठा आदमी|

जानकर भी आज सब अनजान देखा आदमी|

 

जग पराया देश है अपना यहाँ कुछ भी नहीं

कुछ दिनों के वास्ते इस जग में आया आदमी|

 

लोग अपने वास्ते जीते हैं दुनिया में मगर

जो पराया दर्द समझे है वो आला आदमी

  

ये ख़जाना और दौलत सब यही रह जाएगा 

सिर्फ तेरा कर्म ही बस साथ देगा आदमी|

 

बेवफ़ा सी ज़िन्दगी जिस दिन तुझे ठुकराएगी

आदमी को लाश कहकर ले चलेगा आदमी|

 

‘मिंटू’ अब भी वक्त है अपने को तू पहचान ले

बीत जाएगा समय तो क्या करेगा आदमी|

 

 

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 703

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on April 9, 2017 at 8:33pm

आदरणीय गिरिराज साहेब

हौसला अफजाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 9, 2017 at 11:22am

आदरनीय बैज नाथ भाई , एक अच्छी गज़ल के लिये आपको दिल से बधाइयाँ । गुणिजन की सलाहों पर गौर कीजियेगा ।

Comment by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on April 8, 2017 at 8:57pm

आदरणीय समर साहेब ....आप बिलकुल सही फरमा रहे हैं....'.तू' की जगह ..'वो'' ही सही है ...शुक्रिया 

Comment by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on April 8, 2017 at 5:47pm

आदरणीय सुरेश साहेब , समीर साहेब व आरिफ साहेब ...हौसला अफजाई के लिए ....... बहुत बहुत शुक्रिया आप सब का |

Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on April 8, 2017 at 10:58am
आदरणीय बैजनाथ जी बहुत ही सुंदर रचना। टंकण त्रुटियाँ ठीक कर लीजिएगा। हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर।
Comment by Samar kabeer on April 8, 2017 at 10:55am
जनाब बैजनाथ शर्मा'मिंटू'जी आदाब,ग़ज़ल अच्छी हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
जनाब आरिफ़ साहिब ने जो टंकण त्रुटियां बताई हैं उन पर ध्यान दीजियेगा,लय बाधित हो रही है इस कारण ।
मक़्ते का ऊला मिसरा। :-
''मिंटू'अब भी वक़्त है अपने को तू पहचान ले'
इस मिसरे में 'तू'शब्द की जगह 'वो'शब्द मुनासिब होगा,क्योंकि सानी मिसरे में आपका मुख़ातिब 'आदमी'है, न कि आप खुद ,देखियेगा ।
Comment by Mohammed Arif on April 8, 2017 at 10:41am
आदरणीय बैजनाथ जी आदाब, बेहतरीन ग़ज़ल । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए । कुछ शब्द हैं जिन पर आपका ध्यान दिलाना चाहूँगा-"जानकार"है या "जानकर","दौलात"है या "दौलत"तथा "जाएगा"शब्द की भी वर्तनी ठीक नहीं है । देखियेगा । बाक़ी गुणीजन अपनी राय देंगे ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

anwar suhail updated their profile
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
yesterday
ajay sharma shared a profile on Facebook
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Monday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Nov 30
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service