For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ये तमाशा तो मेरे ज़ह’न के अन्दर निकला, ग़ज़ल नूर की

गा ल गा गा (ललगागा) / लल गागा/ ललगागा / गा गा (ललगा) 
.
ये तमाशा तो मेरे ज़ह’न के अन्दर निकला,
मैं बशर मैं ही ख़ुदा मैं ही पयम्बर निकला.
.
ये ज़मीं चाँद सितारे ये ख़ला.... सारा जहान, 
वुसअत-ए-फ़िक्र से मेरी ज़रा कमतर निकला.

.
संग-दिल होता जो मैं आप भी कुछ पा जाते,
क्या मेरी राख़ से पिघला हुआ पत्थर निकला?
 
.
सोचता था कि मेरे अश्क हैं क्यूँ कर नमकीन,
ज़ह’न की थाह में गुम-गश्ता समुन्दर निकला.
.  
धडकनों में हुई महसूस कोई तेज़ चुभन,
दिल टटोला तो किसी याद का नश्तर निकला.
.
“नूर जी” ज़ह’न की आज़ादी प इतराते रहे,
पर अना शाह रही, ज़ह’न तो नौकर निकला.
.
निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित 

Views: 1069

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 12, 2017 at 9:49pm

पुन: धन्यवाद आदरणीय,
.

सादर  

Comment by Samar kabeer on April 12, 2017 at 9:31pm
'ये तमाशा तो मेरे ज़ह्न के अंदर निकला'
निलेश जी मिसरा अपने आप में भरपूर है,पुनः बधाई स्वीकार करें,बेकार की बहस में अपना क़ीमती वक़्त बर्बाद न करें ।
'वही है तर्क-ए-तअल्लुक़ के बाद गैरियत
तो क्या में भूल ही बैठूँ तिरी नुहब्बत को'
पिछले दिनों ओबीओ पर 'शाद अज़ीमाबादी का ये मिसराए तरह दिया गया था,ये एक मिसरा ही काफ़ी है:-
'मेरी तलाश में मिल जाये तू तो तू ही नहीं'
Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 12, 2017 at 9:26pm

धन्यवाद आ. गिरिराज जी ...
आभार 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 12, 2017 at 9:22pm

आदरनीय नीलेश भाई , लाजवाब गज़ल कही है ... हार्दिक बधाइयाँ स्वीकर करें ।

चर्चित मिसरे मे ... तो ... मुझे भी  भर्ती का नही लगा ... और सार्थकता को आपने  अच्छे से साबित भी कर दिया है .. ये मेरा अपना ख्याल है .. ।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 12, 2017 at 8:46pm

आ. अनुराग जी,

हटाकर पढना होता तो लिखता ही क्यूँ??
वहाँ तो  उस तमाशे के अन्दर ही होने की ज़मानत है ...
सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 12, 2017 at 8:14pm

शुक्रिया आ. शिज्जू भाई ....
मिसालें इसलिये दी हैं ताकि अन्य सीखने वाले भ्रमित न हों ... 
सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 12, 2017 at 8:03pm
आ. निलेश भाई मुझे नहीं लगता आपको इतनी मिसालें देने की ज़रूरत है मिसरे के भाव साफ हैं और शे'र भी अपनी बात कह रहा है। 'तो' भाव को पूर्णता प्रदान कर रहा है।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 12, 2017 at 7:49pm

शुक्रिया आ. शिज्जू भाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 12, 2017 at 7:48pm
बेहतरीन गगज़ल हुई है आ. निलेश भाई, इस्लाह के बाद शेर बेहतरीन हुआ है
Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 12, 2017 at 7:47pm

हुज़ूर ..
बहुत सोच कर इस तो तक पहुँचा हूँ....
वो आदमी ख़राब निकला ....और वो आदमी तो ख़राब निकला में जो भाव तो का है वही भाव यहाँ तो का है....

मेरे मिसरे में मुझे तो "तो" एक देजावू इफ़ेक्ट दे रहा है... एक सरप्राइज वाला भाव ..
जैसे 
अरे त्तेर्री ...कहाँ कहाँ ढूंढा ..और ये चश्मा तो सामने ही रखा था ..

.

दिल ही तो है न संग-ओ-खिश्त .......
दिल है मेरा, न संग-ओ-खिश्त....
.
.
हम तो आये थे.. रहे शाख़ पे फूलों की तरह 
तुम अगर ख़ार समझते हो तो हट जाते हैं ..सुदर्शन फ़ाकिर .
.
ये तो नहीं कि ग़म नहीं
हाँ! मेरी आँख नम नहीं 

तुम भी तो तुम नहीं हो आज 
हम भी तो आज हम नहीं 

अब न खुशी की है खुशी
ग़म भी अब तो ग़म नहीं ..रघुपति सहाय 
.
ते ये तय रहा कि तो हर बार भर्ती का नहीं होता ...
शायद आप को आशय स्पष्ट कर पाया हूँ... न कर पाया हूँ तो इसे मेरी कमज़ोरी मानकर स्वीकार कर लें ..
.
सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार सुशील भाई जी"
5 hours ago
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार समर भाई साहब"
5 hours ago
रामबली गुप्ता commented on सालिक गणवीर's blog post ग़ज़ल ..और कितना बता दे टालूँ मैं...
"बढियाँ ग़ज़ल का प्रयास हुआ है भाई जी हार्दिक बधाई लीजिये।"
5 hours ago
रामबली गुप्ता commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post करते तभी तुरंग से, आज गधे भी होड़
"दोहों पर बढियाँ प्रयास हुआ है भाई लक्ष्मण जी। बधाई लीजिये"
5 hours ago
रामबली गुप्ता commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक - गुण
"गुण विषय को रेखांकित करते सभी सुंदर सुगढ़ दोहे हुए हैं भाई जी।हार्दिक बधाई लीजिये। ऐसों को अब क्या…"
6 hours ago
रामबली गुप्ता commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (ग़ज़ल में ऐब रखता हूँ...)
"आदरणीय समर भाई साहब को समर्पित बहुत ही सुंदर ग़ज़ल लिखी है आपने भाई साहब।हार्दिक बधाई लीजिये।"
6 hours ago
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आहा क्या कहने भाई जी बढ़ते संबंध विच्छेदों पर सभी दोहे सुगढ़ और सुंदर हुए हैं। बधाई लीजिये।"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"सादर अभिवादन।"
8 hours ago
Sushil Sarna commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"आदरणीय रामबली जी बहुत सुंदर और सार्थक प्रस्तुति हुई है । हार्दिक बधाई सर"
yesterday
Admin posted discussions
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  …See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"रिश्तों की महत्ता और उनकी मुलामियत पर सुन्दर दोहे प्रस्तुत हुए हैं, आदरणीय सुशील सरना…"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service