कलियों का रुदन ....
रात भर
कलियों का रुदन होता रहा
उनके अश्रु
ओस कणों में
परिवर्तित हो गए
पर तुम
उनके अंतर्मन की वेदना से
अनभिज्ञ रहे भानु
उनकी सिसकियाँ
सन्नाटों में
तुम्हें पुकारती रहीं
मगर तुम न सुन सके
आहों के वेग से
तुम
अनभिज्ञ रहे भानु
सच तुम
बहुत निष्ठुर हो
भला
तुम्हारे रश्मि दूत भी कहीं
उनके मूक बंधन के
कारण का निवारण बन
सकते हैं
तुम कारण हो
उनकी विरह वेदना का
तुम ही निवारण हो
उनके अंतर्मन की व्यथा का
तुम आओ तो
शायद
उनका अश्रु प्रवाह रुक पाए
उनके अकथ
शब्दों को थाह मिल जाए
देखो
विभावरी भी
कलियों के रुदन से द्रवित है
स्वयं आओ तो
सृष्टि को चैन मिल जाए
तुम ही कहो
क्या उनकी प्रतीक्षा से
स्वयं को अनभिज्ञ रखना
उचित है
भानु ?
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय तस्दीक अहमद खान साहिब सृजन में निहित भावों को अपनी आत्मीय प्रशंसा से अलंकृत करने का हार्दिक आभार
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