मापनी -१२२२ १२२२ १२२
कोई रिश्ता निभाया जा रहा है
मुझे फिर से बुलाया जा रहा है
भले ही खिड़कियाँ हैं बंद घर की,
मगर परदा उठाया जा रहा है
पड़ीं हैं नींव में चुपचाप ईंटे,
भले बोझा बढाया जा रहा है
अभी कुछ शांत हैं लहरें वहाँ पर,
उन्हें पत्थर दिखाया जा रहा है
नहीं है पास उनके एक छत भी,
महल का गीत गाया जा रहा है
बिठाना था जिन्हें पलकों पे’ हर पल,
उन्हें घर से भगाया जा रहा है
जरा सा हाथ सूरज का हटा क्या,
कि मुझसे दूर साया जा रहा है
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय Nilesh Shevgaonkar जी अवश्य इस मंच पर आप सभी गुनीजनों के सानिध्य में रह कर अवश्य बेहतर कर पाऊंगा , हौसला अफजाई के लिए ह्रदय से आभार आपका
आदरणीय Anuraag Vashishth जी आपकी प्रतिक्रिया से प्रोत्साहित हूँ, बहुत बहुत शुक्रिया आपका
आ. बसन्त जी,
अच्छीअजल हुई है... और भी बेहतर हो सकती थी...
मंच आप से और भी बेहतर की अपेक्षा करता है ..
सादर
आभार आदरणीय नरेंद्र सिंह चौहान जी आपका
बहोत खूब
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी आपकी हौसलाअफजाई के लिए दिल से शुक्रिया
आदरणीय Samar Kabeer जी हौसलाफजाई के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आपका
आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी हौसलाफजाई के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आपका
आदरणीय Sushil Sarna जी हौसलाफजाई के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आपका
आदरनीय बसंत भाई , अच्छी गज़ल कही है , हार्दिक बधाइयाँ । गज़ल के अरकान सुधार लीजियेगा ।
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