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ख्वाब भी तेरा सताता है मुझे

एक ग़ज़ल का प्रयास

२१२२ २१२२ २१२

 

नींद में आकर सताता  है मुझे

ख्वाब भी तेरा जगाता है मुझे

 

झूमती आती घटायें बदलियाँ,

प्यार का मौसम बुलाता है मुझे

 

सर्दियों में सूर्य भाया था बहुत,  

गर्मियों में अब  तपाता है मुझे

 

प्रार्थना तुमसे मिलन की, की तो है,

देखिए प्रभु कब मिलाता है मुझे

 

साथ मेरा आप दोगे या नहीं,

प्रश्न ये हर पल डराता है मुझे

 

मुश्किलें हैं जिन्दगी में, राह भी,

हौसला जीना सिखाता है मुझे

(मौलिक एवं अप्रकाशित )

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Comment

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Comment by बसंत कुमार शर्मा on May 10, 2017 at 1:02pm

आदरणीय Ravi Shukla जी आपका सुझाव निश्चित ही अनुकरणीय है, मैंने सुधर कर लिया है, नमन आपको 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on May 10, 2017 at 1:01pm

आदरणीय बृजेश कुमार 'ब्रज' जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया, आपको ग़ज़ल पसंद आई 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on May 10, 2017 at 1:00pm

 आपकी समीक्षा और सुझाव से संबल मिला आदरणीय Samar kabeer जी, मंच में आप सभी विद्वान जनों की राय बहुत मायने रखती है , इसी तरह मार्गदर्शन करते रहिये, सादर नमन 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 9, 2017 at 8:26pm
सर्दियों में सूर्य भाया था बहुत,
गर्मियों में अब तपाता है मुझे..वाह आदरणीय उम्दा ग़ज़ल हुई..सादर
Comment by Samar kabeer on May 9, 2017 at 6:59pm
जनाब बसन्त कुमार शर्मा जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा हुआ है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
इस्लाह भी अच्छी मिली है ।

'प्रार्थना तुम से मिलन की,की तो है'
इस मिसरे में दो बार 'की'शब्द खटक रहा है,इस मिसरे को यूँ कह सकते हैं :-
'प्रार्थना की तुमसे मिलने की बहुत'
इसी तरह ये मिसरा :-
'मुश्किलें हैं ज़िन्दगी में,राह भी'
इस मिसरे को यूँ कहें तो साफ़ हो जायेगा:-
'मुश्किलें हैं ज़िन्दगी की राह में'
Comment by Ravi Shukla on May 9, 2017 at 3:23pm

आदरणीय बसंत जी अच्‍छी गजल हो गई है बधाई अशआर बार बार पढ़े आपको स्‍वयं ही संशोधन दिखने लगेंगे जैसे

आखिरी शेर में हमें तो शब्‍द की कमी लगी 

मुश्किलें है जीस्‍त में तो राह भी

हौसला जीना सिखाता है मुझे  एक त्‍वरित सुझाव मात्र है । सादर

Comment by बसंत कुमार शर्मा on May 9, 2017 at 10:06am

आदरणीय Nilesh Shevgaonkar जी आपकी सटीक समीक्षा से अभिभूत हूँ, प्रयास करता हूँ और चमकाने का, इसी तरह मार्गदर्शन करते रहें, सादर नमन आपको 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 9, 2017 at 10:00am

आ. बसन्त जी,

ग़ज़ल के लिये बधाई ...
मतला एकदम सपाट है ...

नींद में आकर जगाता है मुझे

ख्वाब भी तेरा सताता है मुझे........
इसे यूँ कहें तो कैसा रहे...
.

नींद में आकर सताता  है मुझे

ख्वाब भी तेरा जगाता है मुझे....
बात वही है ,,,बस अंदाज़ अलग है .... और ये अंदाज़ ही ग़ज़ल को ग़ज़ल बनाता है...
यदि सहमत हों तो अन्य मिसरों को भी यूँ ही जाँचिये, घिसिये चमकाइये ..
सादर 

 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on May 9, 2017 at 9:27am

 आदरणीय गिरिराज भंडारी जी, आपके आशीष को सादर नमन, इसी तरह स्नेह बनाये रखें  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 9, 2017 at 9:20am

आदरणीय बसंत भाई , बहुत अच्छी गज़ल क्कही है .... दिल से बधाइयाँ प्रेषित हैं ... स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

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