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गजल(आइये,आज का चलन.....)

212 212 212 212
^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^^
आइये,आज का जो चलन,देखिये,
सच हुआ झूठ का जो कथन,देखिये।1

मैं सही,वह गलत,घोषणा हो रही,
जिंस बन बिक रहे वे,रटन देखिये।2

देख लें सूट-बूटी वदन आज कल
फट गयी जेब चमके बटन देखिये।3

बेतरह ढूँढ़ते आपकी गलतियाँ
ढूँढ़ते आप, फटता गगन देखिये।4

नेमतें खुद गिनाते , हुए मौन कब?
लग रहा, बढ़ गया है वजन, देखिये।5

चाँद पर थूकना है मुनासिब कहीं?
दाग लगता नहीं क्या? फलन देखिये।6

बाअदब कह रहे बात वे हमनवा
जज हुए हम यहाँ, चोर बन देखिये।7

चेहरे चाक सब अनगिनत घाव हैं
बोल रहे तन नहीं,आप मन देखिये।8

सेठ बन ऐंठते आजकल राहजन
कल गया बीत कल,आज धन देखिये।9
@
@'मौलिक व अप्रकाशित'

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Comment by vijay nikore on May 16, 2017 at 1:44pm

अच्छी गज़ल के लिए हार्दिक बधाई

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on May 15, 2017 at 6:22pm
हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी!
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 15, 2017 at 12:17pm
बड़ी ही खूबसूरत कटाक्ष करती हुई ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकारें..सादर
Comment by Samar kabeer on May 14, 2017 at 7:44pm
जनाब मनन कुमार सिंह जी आदाब,बढ़िया ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।

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