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ग़ज़ल...क्या क्रांति की है दुन्दभि या सिर्फ ये उफान है

मुफाइलुन मुफाइलुन मुफाइलुन मुफाइलुन
1212 1212 1212 1212
सुदूर उस तरफ जहाँ झुका वो आसमान है
वहीँ उसी दयार में गरीब का मकान है

ये आजकल जो शोर है शहर शहर गली गली
क्या क्रांति की है दुन्दभि या सिर्फ ये उफान है

चढ़ाव ज़िन्दगी का ज्यूँ मचलती है कुई लहर
कदम जरा सँभल के रख बहुत खड़ी ढलान है

जड़ों से जो जुदा हुये जमीन भी न पा सके
​​बिखर गये वो टूटकर समय का ये बयान है

ये प्यार की छुअन हुई या कसमकस ए ज़िन्दगी
बृजेश के ललाट पे जो चोट का निशान है
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 3, 2017 at 7:10pm
रचना पटल पे आपका हार्दिक अभिनन्दन एवं आभार आदरणीय विजय जी..
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 3, 2017 at 7:10pm
आपका बहुत बहुत आभार आदरणीया कल्पना जी..
Comment by vijay nikore on June 3, 2017 at 3:10pm

बहुत सुन्दर भाव हैं। गज़ल अच्छी लगी। बधाई।

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on June 3, 2017 at 7:27am

भावपूर्ण रचना हुई है आदरणीय ब्रजेश कुमार जी हार्दिक बधाई |

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on June 1, 2017 at 8:44pm
ह्र्दयतल से आभार व्यक्त करता हूँ आदरणीय गुरप्रीत सिंह जी..सादर
Comment by Gurpreet Singh jammu on June 1, 2017 at 9:50am

इस बह्र में बहुत दिलकश ग़ज़ल कही है आपने आदरणीय ब्रजेश कुमार जी ,, बधाई आपको 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 31, 2017 at 12:48pm
आदरणीय श्याम नारायन वर्मा जी..उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार..सादर
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 31, 2017 at 12:47pm
आदरणीय शर्मा जी रचना पटल पे आपका हार्दिक स्वागत है..सादर
Comment by Shyam Narain Verma on May 30, 2017 at 4:15pm
इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई
Comment by बसंत कुमार शर्मा on May 30, 2017 at 10:01am

बहुत बढ़िया भावपूर्ण ग़ज़ल कही है आपने, आदरणीय बृजेश कुमार 'ब्रज' जी , बधाई आपको 

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