For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

फ़ितरत(लघुकथा)राहिला

भोर की चाय और छत का वह कोना जहाँ से गुलमोहर के फूलों से लदे पेड़ दूर तक दिखाई देते थे।ये उसकी रोज की बैठक थी।एक हाथ में चाय की ट्रे और दानों की कटोरी, दूसरे हाथ में पानी का जग ।वह अपने साथ अपनी सखियों को कभी नहीं भूलती।तभी एक बड़े रौबीले ,सजीले सुते हुए पंखों वाले चिड़वे ने उसका ध्यान आकर्षित किया ।वह बड़े ही मोहक अंदाज़ में चिड़ियों के आगे पीछे चक्कर लगा रहा था।वहीं चिड़ियां भी इठला रही थीं।उज़मा को ये सब देख कर मज़ा आने लगा।
रासलीला जारी थी कि अचानक चिड़वे ने अपने ऊंचे उठे पंखों को नीचे की ओर गिरा दिया ।चाल भी रौबीली से खुशामत वाली सी हो गयी। माज़रा तब समझ आया जब उसने चोंच से दाने उठा कर हाल ही में उड़ कर आई चिड़िया के आगे रखना शुरू कर दिए ।लेकिन ये क्या? चिड़िया थी कि टोंके पर टोंके मारे जा रही थी।ऐसा लगा शायद दूर से उसने अपने चिड़वे को रंगरलियां मनाते देख लिया था। वह उन दोनों का तमाशा देख कर अपनी हंसी नहीं रोक पाई।तभी चिड़िया फुर्र हो गयी और चिड़वा उसके जाते ही फिर से पुराने डीलडोल में आ गया ।ये देखकर वह जोर से हंस पड़ी कि अचानक उसकी निगाह बगल वाले फ्लैट की बालकनी में एक मुस्कुराती हुई खूबसूरत सी नाजुक बाला पर पड़ी।इतना तो उसे यकीन हो गया कि वह उसे देख कर तो नहीं मुस्कुरा रही थी अपितु उस लड़की की बालकनी के सामने उसकी बालकनी जरूर थी।जहाँ इस समय पतिदेव अखबार लिए बैठते हैं।
"ये मर्द भी ना सब एक से होते हैं।" उसने गुस्से से चिड़वे की तरफ देखा फिर पैर पटकती हुई बालकनी कि ओर बढ़ गयी।

मौलिक एवम अप्रकाशित

Views: 471

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ravi Prabhakar on June 18, 2017 at 12:41pm

विवरणात्‍मक शैली में लिखी ये लघुकथा आपके लेखकीय कौशल का एक और नमूना है। लघुकथा के पठन के दौरान पाठक स्‍वयं छत पर पहुंच जाता है और चिड़यों की चहचहाट महसूस करता है, यह इस लघुकथा के दृश्‍य चित्रण का बेहतरीन सम्‍प्रेषण है। प्रैजेंटेशन इस लघुकथा का वैशिष्‍टय है जिस हेतु आपको हार्दिक शुभकामनाएं । पर इस कथा का उद्देश्‍य मेरी समझ के परे है कि इस लघुकथा के माध्‍यम से आप कहना क्‍या चाह रही हो? बहरहाल इस लघुकथा के लिए बधाई स्‍वीकारें ।

Comment by Mahendra Kumar on June 10, 2017 at 4:49pm

आ. राहिला जी, पुरुष मानसिकता को एक स्त्री के दृष्टिकोण से आपने अपनी इस लघुकथा में अच्छे से उभारा है. यदि दो-एक संवाद और हो जाएँ तो मज़ा कुछ और बढ़ जाएगा. मेरी तरफ़ से हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service