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मैं तस्वीर हो गया ...

मैं तस्वीर हो गया ...

क्यूँ
मेरी तस्वीर को
दीवार पर लगाते हों
एक कल को
वर्तमान बनाते हो
आज तक
कोई मेरे चेहरे को
पढ़ न पाया था
हर अपने ने मुझे
अपने स्वार्थ का
मोहरा बनाया था
मेरी हंसी भी मज़बूर थी
मेरा अश्क भी पराया था
यूँ जीवित रहने का
मैंने हर फ़र्ज़ निभाया था
चलो अच्छा हुआ
मैं एक अनकही तहरीर हुआ
बेगानों से अपनों की
ज़ागीर हुआ
अब मेरा सम्मान मोहताज़ नहीं
किसे से छुपा कोई राज़ नहीं
मैं तब मरा था
जब ज़िंदा था
पर
जब से आया हूँ
तस्वीर में
अब मैं मरने की
हर हद से दूर हूँ
अब मेरी मुस्कान स्थायी है
अब हर किसी ने
मुझसे प्रीत निभाई है
अब मुझ में
सिर्फ़ गुण नज़र आते हैं
अच्छा हुआ
मैं तस्वीर हो गया
सबके दिलों का
पीर हो गया
गंवारा न था जिन्हें
मैं ज़िंदगी में
आज उन्हीं आखों में
मैं यादों का
नीर हो गया
सच
अच्छा हुआ
मैं तस्वीर हो गया

सुशील सरना

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 455

Comment

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Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on July 16, 2017 at 4:58pm
सुंदर रचना हुई है आदरणीय सुशिल सरना जी | हार्दिक बधाई आदरणीय \
Comment by Sushil Sarna on June 13, 2017 at 1:58pm

आदरणीय बसंत कुमार जी सृजन में निहित भावों को आत्मीय मान देने का हार्दिक आभार।

Comment by Sushil Sarna on June 13, 2017 at 1:58pm

आदरणीय  narendrasinh chauhan जी प्रस्तुति को मान देने का हार्दिक आभार।

Comment by बसंत कुमार शर्मा on June 12, 2017 at 9:44pm

वाह बहुत खूब मन के भावों की अभिव्यक्ति 

Comment by narendrasinh chauhan on June 12, 2017 at 7:28pm

सुन्दर रचना। .

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