सुंदर चितवन उर बसे ,सुंदर सुंदर नैन ।
मृगनैनी को देखकर खोया खोया चैन ।।
अलक छटा बिखरी हुई यौवन पर मधुमास ।
मेघ तृप्त करने चला शुष्क धरा की प्यास ।।
श्वास श्वास में दीर्घता ,अग्नि हुई उच्छ्वास ।
दहकी सारी देह है ,प्रियतम तेरे पास ।।
ज्वाला मुखरित जब हुई,प्रणय बना उन्माद ।
प्रिय के स्वर करते गए,जीवन भर अनुनाद ।।
प्रियतम का है आगमन ,मन में हाहाकार ।
दर्पण पर होने लगी ,प्रश्नों की बौछार ।।
क्षण प्रतिक्षण वह कामिनी,लेती वाट निहार ।
पल दो पल भारी हुए ,व्याकुल सब श्रृंगार ।।
---नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
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