For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हृदय-सम्बन्ध .... क्षणिकाएँ

१.

अर्थहीन प्रश्नों के

चकरदार अर्थ

अर्थहीन न तो क्या होंगे

घेर लेते हैं मुझको

छेड़ी हुई मधुमक्खियों की तरह

अब मुंद जाने दो आँखें

बन्द कर दो किवाड़

             -----

२.

कोमल पत्तों पर अटकी

प्रांजल बूँदें ...

अपनी ही गढ़ी हुई 

वेदना का विस्तार

शायद ... तुम ...

मन के गहरे में कुछ

पल्लवित होना चाहता है

            -----

३.

कभी ऐसा भी तो होता है 

सूर्य के पड़ोस में

बारिश की बूँदें

कितनी शीतल, कितनी भंगुर

सूख-सूख सोखती हैं दर्द को ...

रह जाएगा सूर्य का एकाकीपन अकेला

भड़क-भड़क वह जलता रहेगा

                -----

४.

एकान्त तो

एक ही सुखद था

घिरती शाम की लालिमा में

तुम्हारे स्वरों की

तुम्हारी साँसों की अनुगूँज

            -----

-- विजय निकोर

Views: 705

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on July 7, 2017 at 3:16pm

//सदा की तरह गंभीर , वेदना और स्मृतियों को संजोते , उभारते रची गईं क्षणिकाएं , बहुत बहुत सारगर्भित//

आपने इन सुन्दर शब्दों से सराहना दे कर मेरा मनोबल बढ़ाया है। हार्दिक आभार, आदरणीय विजय शंकर जी।

Comment by vijay nikore on July 7, 2017 at 1:50pm

//बेहद उम्दा सृजन, भावों की सुंदर अभिव्यक्ति//

आपसे यह सराहना मिली, मेरा प्रयास सफ़ल हुआ। हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय सुरेन्द्र जी।

Comment by vijay nikore on July 7, 2017 at 1:48pm

//बहुत कम रचनायें होतीं हैं जिन्हें बार बार पढ़ने को जी चाहता है..आपका सृजन उसी श्रेणी का है//

इतना मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय बृजेश जी।

Comment by vijay nikore on July 7, 2017 at 1:47pm

सराहना के लिए हार्दिक आभार, आदरणीय नरेन्द्रसिहं जी।

Comment by vijay nikore on July 7, 2017 at 12:47pm

//शब्द असहाय हो रहे हैं  ... अंतर्नाद को आपने कितनी खामोशी से स्वरों में बाँध दिया  ... मानो सिंधु तीर पर भाव शब्दों का रूप धार स्वयं की कम्पन्न से अव्यक्त को व्यक्त करना चाहते हूँ  //

सदैव प्रयास करता हूँ कि जो भाव मुझको छू गए हैं, उनको कविता के माध्यम पाठक तक पहुँचाऊँ। यह प्रयास कठिन होता है, परन्तु जब आपसे ऐसी सुन्दर सराहना मिलती है तो प्रयास सफ़ल हो जाता है। आपका हार्दिक आभार, आदरणीय भाई सुशील जी।

Comment by vijay nikore on July 7, 2017 at 11:48am

//हर क्षणिका अपने आप में एक पूरी किताब समेटे हुए है, कितनी आसानी से आप अपने विचारों को कविता में ढाल लेते हैं,और उन विचारों की गहराई और गम्भीरता पाठक को अनदेखी जंजीरों में बांध लेती है//

किसी भी रचनाकार के लिए पाठक के अंतस तक पहुँच पाना स्वयं एक पारितोषिक है ... परन्तु पाठक के अंतस को इस प्रकार छूने से पहले मुझको स्वयं को अपनी भावाभिव्यक्ति से झकझोरना पड़ता है, शब्दों से कई बार झगड़ना भी पड़ता है, जब तक भावना पूरी तरह से पन्ने पर नहीं उतरती। आपने मुझको मान दे कर सदैव और अच्छा लिखने के लिए प्रोत्साहित किया है। मैं आपका बहुत-बहुत शुक्रगुज़ार हूँ, आदरणीय भाई, समर कबीर जी।

Comment by vijay nikore on July 7, 2017 at 11:31am

// बेहतरीन बिम्बों और प्रतीकों से आप्लावित हृदय के अंतस से सहज अनुभूति बनकर निकली कविताएँ ?

इस रचना को ऐसा मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय भाई मोहम्मद आरिफ़ जी।

Comment by Dr. Vijai Shanker on July 5, 2017 at 8:56am
सदा की तरह गंभीर , वेदना और स्मृतियों को संजोते , उभारते रची गईं क्षणिकाएं , बहुत बहुत सारगर्भित , बधाई आदरणीय विजय निकोर जी , सादर।
Comment by नाथ सोनांचली on July 5, 2017 at 5:50am
आद0 विजय निकोर जी सादर अभिवादन, बेहद उम्दा सृजन, भावों की सुंदर अभिव्यक्ति, बधाई आपको
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on July 4, 2017 at 9:33pm
वाह आदरणीय..बहुत कम रचनायें होतीं हैं जिन्हें बार बार पढ़ने को जी चाहता है..आपका सृजन उसी श्रेणी का है..हार्दिक बधाई

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Aazi Tamaam posted a blog post

तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्यावैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर…See More
7 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"परम् आदरणीय सौरभ पांडे जी सदर प्रणाम! आपका मार्गदर्शन मेरे लिए संजीवनी समान है। हार्दिक आभार।"
17 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधमुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान…See More
23 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"ऐसी कविताओं के लिए लघु कविता की संज्ञा पहली बार सुन रहा हूँ। अलबत्ता विभिन्न नामों से ऐसी कविताएँ…"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

छन्न पकैया (सार छंद)

छन्न पकैया (सार छंद)-----------------------------छन्न पकैया - छन्न पकैया, तीन रंग का झंडा।लहराता अब…See More
yesterday
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय सुधार कर दिया गया है "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। बहुत भावपूर्ण कविता हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

गहरी दरारें (लघु कविता)

गहरी दरारें (लघु कविता)********************जैसे किसी तालाब कासारा जल सूखकरतलहटी में फट गई हों गहरी…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन भाईजी,  प्रस्तुति के लिए हार्दि बधाई । लेकिन मात्रा और शिल्पगत त्रुटियाँ प्रवाह…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी, समय देने के बाद भी एक त्रुटि हो ही गई।  सच तो ये है कि मेरी नजर इस पर पड़ी…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service