१.
अर्थहीन प्रश्नों के
चकरदार अर्थ
अर्थहीन न तो क्या होंगे
घेर लेते हैं मुझको
छेड़ी हुई मधुमक्खियों की तरह
अब मुंद जाने दो आँखें
बन्द कर दो किवाड़
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२.
कोमल पत्तों पर अटकी
प्रांजल बूँदें ...
अपनी ही गढ़ी हुई
वेदना का विस्तार
शायद ... तुम ...
मन के गहरे में कुछ
पल्लवित होना चाहता है
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३.
कभी ऐसा भी तो होता है
सूर्य के पड़ोस में
बारिश की बूँदें
कितनी शीतल, कितनी भंगुर
सूख-सूख सोखती हैं दर्द को ...
रह जाएगा सूर्य का एकाकीपन अकेला
भड़क-भड़क वह जलता रहेगा
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४.
एकान्त तो
एक ही सुखद था
घिरती शाम की लालिमा में
तुम्हारे स्वरों की
तुम्हारी साँसों की अनुगूँज
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-- विजय निकोर
Comment
//सदा की तरह गंभीर , वेदना और स्मृतियों को संजोते , उभारते रची गईं क्षणिकाएं , बहुत बहुत सारगर्भित//
आपने इन सुन्दर शब्दों से सराहना दे कर मेरा मनोबल बढ़ाया है। हार्दिक आभार, आदरणीय विजय शंकर जी।
//बेहद उम्दा सृजन, भावों की सुंदर अभिव्यक्ति//
आपसे यह सराहना मिली, मेरा प्रयास सफ़ल हुआ। हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय सुरेन्द्र जी।
//बहुत कम रचनायें होतीं हैं जिन्हें बार बार पढ़ने को जी चाहता है..आपका सृजन उसी श्रेणी का है//
इतना मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय बृजेश जी।
सराहना के लिए हार्दिक आभार, आदरणीय नरेन्द्रसिहं जी।
//शब्द असहाय हो रहे हैं ... अंतर्नाद को आपने कितनी खामोशी से स्वरों में बाँध दिया ... मानो सिंधु तीर पर भाव शब्दों का रूप धार स्वयं की कम्पन्न से अव्यक्त को व्यक्त करना चाहते हूँ //
सदैव प्रयास करता हूँ कि जो भाव मुझको छू गए हैं, उनको कविता के माध्यम पाठक तक पहुँचाऊँ। यह प्रयास कठिन होता है, परन्तु जब आपसे ऐसी सुन्दर सराहना मिलती है तो प्रयास सफ़ल हो जाता है। आपका हार्दिक आभार, आदरणीय भाई सुशील जी।
//हर क्षणिका अपने आप में एक पूरी किताब समेटे हुए है, कितनी आसानी से आप अपने विचारों को कविता में ढाल लेते हैं,और उन विचारों की गहराई और गम्भीरता पाठक को अनदेखी जंजीरों में बांध लेती है//
किसी भी रचनाकार के लिए पाठक के अंतस तक पहुँच पाना स्वयं एक पारितोषिक है ... परन्तु पाठक के अंतस को इस प्रकार छूने से पहले मुझको स्वयं को अपनी भावाभिव्यक्ति से झकझोरना पड़ता है, शब्दों से कई बार झगड़ना भी पड़ता है, जब तक भावना पूरी तरह से पन्ने पर नहीं उतरती। आपने मुझको मान दे कर सदैव और अच्छा लिखने के लिए प्रोत्साहित किया है। मैं आपका बहुत-बहुत शुक्रगुज़ार हूँ, आदरणीय भाई, समर कबीर जी।
// बेहतरीन बिम्बों और प्रतीकों से आप्लावित हृदय के अंतस से सहज अनुभूति बनकर निकली कविताएँ ?
इस रचना को ऐसा मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय भाई मोहम्मद आरिफ़ जी।
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