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वो दहशत गर्द है या मुस्तफ़ा है
क्या तुमने फैसला ये कर लिया है ?
अजब मासूम है क़ातिल हमारा
वो ख़ूँ बारी से अब दहशत ज़दा है
तमाशाई के सच को कौन जाने ?
वो सच में मर रहा है, या अदा है
वो सारी ख़ूबियाँ पत्थर की रख कर
किया है मुश्तहर... वो.. आइना है
कज़ा से बस कज़ा की बात होगी
हमारा बस यही इक फैसला है
बहुत दूरी नहीं है, पर चला जो
कभी मस्ज़िद से मन्दिर... हाँफता है
डरो मत बस हवायें तेज़ हैं कुछ
ख़बर झूठी है पीछे जलजला है
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मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
तमाशाई के सच को कौन जाने ?
वो सच में मर रहा है, या अदा है ...वाह! बहुत ख़ूब!!
इस बढ़िया ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए आ. गिरिराज सर. सादर.
आ० अनुज ---- बहुत उम्दा
तमाशाई के सच को कौन जाने ?
वो सच में मर रहा है, या अदा है-----क्या कहने ?
आदरणीय सुरेन्द्र भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार ।
आदरनीय रवि भाई , आपका तहे दिल से शुक्रिया , हौसला अफज़ाई का ।
आदरणीय बृजेश भाई , आपका हार्दिक आभार ।
आदरणीय समर भाई , ग़ज़ल पर उपस्थिति और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।
मुस्तफा उसके अर्थ के अनुसार लिया है = पवित्र ( पवित्रता का बिम्ब )
आदरणीय नीरज भाई , उत्साह वर्धन के लिये बहुत आभार आपका ।
आदरणीय सुनील सरन भाई , गज़ल की अराहना के लिये आपका हृदय से आभार ।
आदरनीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार ।
आदरणीय आरिफ भाई , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया ।
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