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ग़ज़ल - क्यों भला दंड वत हुआ जाये ( गिरिराज भंडारी )

2122   1212   22/112

अब यहाँ पर विगत हुआ जाये

या, जहाँ से विरत हुआ जाये

 

खूब दीवार बन जिये यारो

चन्द लम्हे तो छत हुआ जाये

 

कोई खोले तो बस खला पाये

प्याज़ की सी परत हुआ जाये

 

ताब रख कर भी सर उठाने की

क्यों भला दंड वत हुआ जाये

 

आग, पानी , हवा की ले फित्रत 

हैं जहाँ, जाँ सिफत हुआ जाये

 

खूबी ए  आइना बचाने को 

क्यूँ न पत्थर फ़कत हुआ जाये

******************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 9, 2017 at 7:40am

आदरणीय नीरज भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।

Comment by Ravi Shukla on August 8, 2017 at 5:42pm

आदरणीय गिरिराज भाई जी अपके शेर तक पहुचे शंका समाधान के लिये धन्‍यवाद और आदरणीया राजेश जी आपका भी आभार

Comment by Niraj Kumar on August 8, 2017 at 5:16pm

आदरणीय गिरिराज जी,

अच्छी ग़ज़ल हुई है, दाद के साथ मुबारकबाद,

'लम्हे' वैसे ही एक ही साथ बहुवचन और एक वचन दोनों में इस्तेमाल  किया जा सकता है जैसे 'क्षण'. उदाहरनार्थ दो वाक्य :

१. एक से क्षण (एक वचन)  से बहुत सारे क्षण (बहु वचन) जुड़े होते हैं.

२. एक लम्हे(एक वचन) से बहुत सारे लम्हे (बहुवचन) जुड़े होते है.

जाहिर सी बात है अनुस्वार अनावश्यक था. लेकिन बहुवचन के तौर पर 'लम्हा' को 'लम्हे' या वाक्य की जरूरत हो तो 'लम्हों' लिखना बेहतर है. लम्हा का बहुवचन 'लम्हात' लिखना वैसा ही है जैसे क्षण को बहुवचन के तौर पर क्षणाः लिखना.

सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 8, 2017 at 4:46pm

आदरनीय सुरेन्दर भाई , गज़ल की सराहना के लिये  आपका हृदय से आभार ।

आदरनीय , मतले को देखियेगा तो पता चलेगा , कि गज़ल  अत काफिया  निर्धारित कर के कही गयी है ---  विगत हुआ जाये और विरत हुआ जाये ...  दोनो मे अत काफिया है ,

इसी लिये -- क्यूं न पत्थर फ़क़त हुआ जाये   -- कहा गया है , ता कि अत काफिया की शर्त पूरी हो सके । आशा है आप समझ गये होंगे ।

Comment by surender insan on August 8, 2017 at 3:34pm
आदरणीय गिरिराज भाई जी आदाब। सभी अशआर बहुत उम्दा हुए है जी। शेर दर शेर दिली दाद कबूल फरमाये जी। आदरणीय अभी मैं सीख रहा हूँ जी। केवल सीखने के भाव से ही जानकारी के लिए पूछ रहा हूँ जी अन्यथा न लीजियेगा जी।
आदरणीय आखरी मिसरे में
सही वाक्य कैसे बनता है

क्यूं न पत्थर फ़क़त हुआ जाये
या
क्यूँ न फ़क़त पत्थर हुआ जाये

आदरणीय क्या दोनों ही तरह से मिसरा कहे तो सही होता है या जो आपने लिखा वही सही है जी ?
मेहरबानी कर थोड़ी जानकारी दे जी। सादर नमन जी।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 8, 2017 at 2:28pm

आदरणीया राजेश जी , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया आपका । आ. रवि भाई जी के प्रश्न का जवाब देने के लिये आपका अलग से आभार .. मै भी यही जवाब देने वाला था ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 8, 2017 at 2:26pm

आदरणीय रवि भाई , गज़ल की सराहना के लिये दिल से शुक्रिया आपका ।

आदरनीय .. शेर मे  चूकि कर्ता मै खुद हूँ .. इस्लिये ...  छत हुआ जाये   कहा है .. यहाँ कर्ता  छत नही है । मिसरा मेरे खयाल से ठीक है ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 8, 2017 at 2:23pm

आदरनीय बृजेश भाई , हौसला अफज़ाई का बेहद शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 8, 2017 at 2:23pm

आदरनीय बसंत भाई , हौसला अफज़ाए का बेहद शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 8, 2017 at 1:42pm

बहुत खूब ग़ज़ल कही आद० गिरिराज जी ,ग़ज़ल पर आई प्रतिक्रियाएँ भी पढ़ी तथा ज्ञान में इजाफा भी हुआ |सब अपनी अपनी जगह सही हैं|हम हिंदी भाषियों के लिए ये समस्याएं आती रहती हैं |

मेरी बधाई स्वीकार करें इस सुन्दर ग़ज़ल पर |

और हाँ छत को लेकर आपका मिसरा मेरे ख्याल से तो सही है क्योंकि बात अपने लिए कही गई है छत के लिए नहीं ----कुछ लम्हे छत (की तरह) हुआ जाए -----  बिलकुल सही है 

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