निर्दोषों के हत्यारों की,
क्या बस निंदा काफी है.
घाटी में आतंकी मिलकर,
दिखा रहे हैं दानवता.
हृदय विलखता लिए हुए हम,
ओढ़े बैठे सज्जनता.
तड़प रही है भारत माता,
जयचंदों को माफ़ी है.
जाति धर्म की राजनीति में,
इंसान हो रहा गायब.
चमचों की कोशिश रहती है,
रहे हमेशा खुश साहब.
भोली जनता को गोली है,
पल पल नाइंसाफी है.
टूट गए हैं सारे सपने,
रुदन कर रहीं अबलाएँ.
बार बार वे प्रश्न पूछकर,
दग्ध हृदय को और तपाएँ.
टी वी पर चल रहे तमाशे,
होती फोटोग्राफी है.
"मौलिक एवं अप्रकाशित"
Comment
आदरनीय विजय निकोरे जी आपका ह्रदय से आभार
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टूट गए हैं सारे सपने,
रुदन कर रहीं अबलाएँ.
बार बार वे प्रश्न पूछकर,
दग्ध हृदय को और तपाएँ.//
सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई।
आदरणीय laxman dhami जी आपका दिल से शुक्रिया
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी , आपका दिल से शुक्रिया
आदरणीय बसंत भाई , लाजवाब गीत रचना के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ।
आदरणीय Samar kabeer जी हौसला अफजाई के लिए दिली शुक्रिया आपका
आदरणीय Ravi Shukla जी हौसला अफजाई के लिए दिली शुक्रिया आपका
आदरणीय KALPANA BHATT जी हौसला अफजाई के लिए दिली शुक्रिया आपका
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