घर टूटे मिट गए वसेरे,
महलों में आवास हो गया.
ऊँचे कद को देख लग रहा,
सबका बहुत विकास हो गया.
भूल गए पहचान गाँव की,
बसे शहर में जब से आकर.
नहीं अलाव प्रेम के जलते,
सूनी है चौपाल यहाँ पर.
अधरों पर मुस्कान किन्तु
खंडित उर का विश्वास हो गया.
पारा जा पहुँचा पचास पर,
घर बाहर है एक कहानी.
संग नदी के सूख रहा है,
मानव की आँखों का पानी.
तपते हुए अषाढ़ कट रहा,
सावन सूखा मास हो गया.
कंकरीट के जंगल आये,
सबका हृदय कठोर कर गए.
घर के आँगन जाते जाते,
रिश्तों को कमजोर कर गए.
नागफनी का राजतिलक है,
तुलसी को वनवास हो गया.
"मौलिक एवं अप्रकाशित "
Comment
आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी, आपकी हौसला अफजाई और अनुकरणीय सुझाव को सादर नमन , इसी तरह आशीष बनाये रखें सादर
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी , आपकी मनभावन प्रतिक्रिया को सादर नमन
अधरों पर मुस्कान किन्तु खंडित उर का विश्वास हो गया. (१४, १८)------------अधरों पर मुस्कान सुसज्जित खंडित उर-विश्वास हो गया
बहुत ही सुन्दर रमणीय गीत आदरणीय .
क्या बात है , आदरणीय बसंत भाई , बेहतरीन गीत रचना की है आपने , हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार करें ।
आदरणीय रवि शुक्ल जी आपकी हौसला अफजाई का दिल से शुक्रिया
आदरणीय बसंत कुमार जी बहुत सुन्दर नवगीत लिखा आपने भाव और कथ्य की दृष्टि दोनो से ही अच्छा लगा । बधाई स्वीकार करें
आदरणीय Samar kabeer जी, आपकी हौसला अफजाई के लिए दिल से बहुत बहुत शुक्रिया, आपके आदेश का अवश्य पालन होगा. यह ठीक भी होगा कि विधा लिखी जाये
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online