मापनी २२१२ २२१२ २२१२
आ तो सही एक बार मेरे गाँव में
अद्भुत अतिथि सत्कार मेरे गाँव में
हर वक्त रहते हैं खुले सबके लिए
सबके दिलों के द्वार मेरे गाँव में
तालाब नदियाँ और पनघट की छटा
है प्रीति का विस्तार मेरे गाँव में
सम्मान पूरा है बुजुर्गों का यहाँ
होते नहीं वे भार मेरे गाँव में
सब बाँटते मिल साथ में सुख और दुख
हो जीत या फिर हार मेरे गाँव में
"मौलिक एवं अप्रकाशित"
Comment
आदरणीय Hari Prakash Dubey जी दिल से शुक्रिया आपकी हौसला अफजाई के लिए
आदरणीय KALPANA BHATT जी दिल से शुक्रिया आपकी हौसला अफजाई के लिए
आदरणीय narendrasinh chauhan जी दिल से शुक्रिया आपकी हौसला अफजाई के लिए
आदरणीय बसंत कुमार शर्मा जी सुन्दर ग़ज़ल है । हार्दिक बधाई आपको ! सादर
बढ़िया ग़ज़ल कही है अपने आदरणीय | बधाई स्वीकारें |
खुब सुन्दर रचना
आदरणीय Mahendra Kumar जी दिल से शुक्रिया आपकी हौसला अफजाई के लिए
आदरणीय khursheed khairadi जी दिल से शुक्रिया आपकी हौसला अफजाई का
आदरणीय laxman dhami जी दिल से शुक्रिया आपकी हौसला अफजाई के लिए
आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी हौसला अफजाई के लिए दिल से शुक्रिया आपका.
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