जिन्दगी की रेलगाड़ी,
भागती सरपट चली.
मिल न पायीं दो पटरियाँ,
साथ पर चलती रहीं.
देख कर अपनों की खुशियाँ,
दीप बन जलती रहीं.
दे गयी राहत सफर में,
चाय की इक केतली.
मौसमों की मार झेली,
जंग अपनों से लड़ी.
जंगलों की खाक छानी,
पैर शहरों के पड़ी.
ख्वाब देखे नित नये,
रख ली सँजोकर पोटली.
अनगिनत ठहराव आये,
बोझ कम ज्यादा हुआ.
पर हमें रुकना नहीं है,
रोज ये वादा हुआ.
राह सच की थी कठिन,
लगती रही फिर भी भली.
"मौलिक एवं अप्रकाशित "
Comment
आभार आदरणीय laxman dhaami जी आपका
आदरणीय vijay nikore जी हौसला अफजाई के लिए आपका दिल से शुक्रिया
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अनगिनत ठहराव आये,
बोझ कम ज्यादा हुआ.
पर हमें रुकना नहीं है,
रोज ये वादा हुआ.//
बहुत ही सुन्दर भाव । हार्दिक बधाई, आदरणीय बसंत जी
मंच पर गीत पोस्ट कर दिया है आदरणीय बसंत सर समयअनुसार प्रतिक्रिया दीजियेगा कि प्रयास कितना सार्थक हुआ ।
अरे वाह स्वागत आपका आदरणीय रवि शुक्ला जी, बहुत अच्छा लगा , गीत का स्वागत है
आदरणीय बसंत सर आपकी रचनाओं से अनुमान तो हमें हो रहा था किंतुआपने आपने कंफर्म भी कर दिया । हम बीकानेर मंडल की वाणिज्य शाखा में कार्यालय अधीक्षक के पद पर सेवाएं दे रहे है ( न्यायालय प्रकरण की डीलिंग है ) उत्तर पश्चिम रेलवे मुख्यालय में एक भारत श्रेष्ठ भारत विषय पर प्रतिभाग के लिये हमें नामित किया गया था किन्तु एक अवमानना प्रकरण में चंडीगढ़ जाना पड़ा इसलिये प्रतियोगिता में प्रति भाग नहीं हुआ । वो गीत आज आप सबके लिये मंच पर रखते है । सादर
आदरणीय Ravi Shukla जी आपकी मनभावन प्रतिक्रिया हेतु दिल से शुक्रिया, मैं रेलवे में भारतीय रेल यातायात सेवा (IRTS) में हूँ तथा वर्तमान में जबलपुर पश्चिम मध्य रेल मुख्यालय में उप मुख्य परिचालन प्रबंधक के पद पर कार्यरत हूँ.
आदरणीय बसंत कुमार जी सुन्दर गीत रचा आपने बधाई रेल गाड़ी के माध्यम से एक दर्शन दिखाया है आपने । बधाई स्वीकार करें । आप रेलवे में काम करते है क्या कुछ दिन पहले एक भारत श्रेष्ठ भारत विषय पर आपका गीत पढा था रेलवे में उस पर प्रतियोगिता थी
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