कब किसी से यहाँ मुहब्बत की.
जब भी' की आपने सियासत की.
प्यार पूजा सदा ही हमने तो,
आपने कब इसकी इबादत की
जुल्म धरती ने सह लिए सारे,
आसमां ने मगर बगावत की
आदमी आदमी से जलता है,
कुछ कमी है यहाँ जहानत की
ताव दे मूँछ पर सभी बैठे,
कौन बातें करे शराफत की.
फूल भी चुभ रहे उन्हें अब तो,
बात क्या अब करें नजाकत की.
''मौलिक एवं अप्रकाशित''
Comment
आदरणीय समर कबीर जी आपकी सूक्ष्म दृष्टि और सदाशयता को सादर नमन
आदरणीय Samar kabeer जी आपका दिल से शुक्रिया , इसी तरह मार्गदर्शन करते रहें सादर
आदरणीय रवि शुक्ल जी अब देखें ठीक हुआ क्या
मापनी २१२२ १२ १२ २२/२११
कब किसी से यहाँ मुहब्बत की.
आपने तो सदा सियासत की.
जुल्म सहती रही धरा कितने,
आसमां ने कहाँ इनायत की
मूँछ पर ताव दे सभी बैठे,
कौन बातें करेगा उल्फत की.
फूल भी चुभ रहे उन्हें अब तो,
क्या हो’ तारीफ़ इस नजाकत की.
आदमी आदमी से जलता है,
कुछ कमी है यहाँ जहानत की.
यूँ विखरता नहीं कोई रिश्ता,
है जरूरत जरा हिफाजत की.
माँ के’ चरणों की धूल मिल जाए,
फिर तमन्ना हमें न जन्नत की.
आदरणीय बसंत सर आपने हमारे कहे को मान दिया उसके लिये आभार आदरणीय समर साहब पहले ही आपकी गजल पर आ चुके है शहादत किस अर्थ में आपने लिया है ये सार्थक प्रश्न है । अगर आप माने तो इस शेर में तकाबुले रदीफ भी हो गया है । आपके भाव के थोड़ा सा आस पास इनायत शब्दआ सकता है ( आसमां ने कहाँ इनायत की ) वैसे इस पर ढेरा सारे काफिये आपको मिल जाएंगे । सादर
आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी, आदरणीय रवि शुक्ला जी, आदरणीय समर कबीर जी, आदरणीय मोहित मिश्रा जी आप सबके स्नेह का आभारी हूँ , आपके सुझावों के उपरान्त और थोड़ी मेहनत की है पुनः आपके समक्ष प्रस्तुत है
कब किसी से यहाँ मुहब्बत की.
जब भी’ की आपने सियासत की.
जुल्म सहती रही सदा धरती,
आसमां ने कहाँ शहादत की
ताव दे मूँछ पर सभी बैठे,
कौन बातें करेगा उल्फत की.
फूल भी चुभ रहे उन्हें अब तो,
क्या हो’ तारीफ़ इस नजाकत की.
आदमी आदमी से जलता है,
कुछ कमी है यहाँ जहानत की
यूँ विखरता नहीं कोई रिश्ता,
है जरूरत जरा हिफाजत की,
माँ के’ चरणों की धूल मिल जाए,
फिर तमन्ना हमें न जन्नत की.
आदरणीय बसंत सर अच्छी गजल कही आपने शेर दर शेर मुबारक बाद पेश करते है । शीघ्रता में आप शायद इसका अरकान लिखना भूल गये है । अशआर की बात करें तो दूसरा शेर कुछ अस्पष्ट लगा है मआनी तक नहीं पहुँच पा रहे है । और हमने इसके अरकान के अनुसार सानी मिसरे पर तकतीअ की तो
आपने कब /2122 इसकी 22 / इबा12 / दत की 22 बहर भी नहीं मिल पा रही है अलिफ वस्ल भी करें तो आपने 21 2 कबिसकी 122 ये वज्न आ रहा है मिसरे का । देखियेगा
चौथा और आखिरी शेर खास तौर पर पसंद आया उसके लिये अलग से दाद हाजिर है ।
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