मफ़ऊल फ़ाइलात मफ़ाईल फ़ाइलात
मापनी २२१/२१२१/१२२१/२१२
करते नहीं हैं’ लोग शिकायत यहाँ हुजूर,
थोड़ी तो’ हो रही है’ मुसीबत यहाँ हुजूर.
बिकने लगे हैं’ राज सरे आम आजकल,
चमकी खबरनबीस की’ किस्मत यहाँ हुजूर.
बिछती कहीं है’ खाट, कहीं टाट हैं बिछे,
हो हर जगह रही है’ सियासत यहाँ हुजूर.
पलते रहे हैं’ देश में जयचंद हर जगह,
पहली नहीं है’ आज ये’ आफत यहाँ हुजूर.
मिल तो गई हैं कुर्सियाँ सबको बड़ी बड़ी,
मुश्किल मगर दिलों पे’ हुकूमत यहाँ हुजूर
"मौलिक एवं अप्रकाशित"
Comment
आदरणीय laxman dhami जी एवं आदरणीय बृजेश कुमार 'ब्रज' जी आपका दिल से शुक्रिया
आदरणीय बसंत सर बहुत अच्छी बहर चुनी आपने अपने अशआर के लिये और उतने ही अच्छे अशआर कहे आपने । तीसरे शेर का सानी मिसरा कुछ और बेहतर हेा सकता है । एक त्वरित सुझाव के रूप में ( होती है जा ब जा क्यूँ सियासत यहॉं हुजूर ) पर विचार कर सकते है आप । दूसरे शेर के सानी मिसरे में खबर नवीस कर लीजियेगा । आखिरी शेर में बहुत अच्छी बात कही आपने । गजल के लिये दिली मुबारक बाद कुबूल करें ।सादर
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